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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जयन्त [ अंक १ वल तुम्हारे ही पिताकी मृत्यु नहीं हुई किन्तु तुम्हारे पिताके पिताकी मृत्यु हुई थी और उनके पिताकी भी यही गति हुई थी। किसीकी मृत्यु होती है तो उसके सम्बन्धी कुछ काल तक उसके लिये शोक करते ही हैं । परन्तु किसीके लिये बराबर दुःख करते रहना मूर्खता और हठ है। ऐसा करना शूर वीर मनुष्यके लिये सर्वथा अनुचित है । जीवमात्र परमात्माकी आज्ञासे मरते हैं ; इसलिये उनकी मृत्युपर दुःख करना मानों परमात्माकी योजनाको दोष लगाना है । इस मृत्युलोकमें जिसका जन्म होगा उसकी मृत्यु अवश्य ही होगी ; इस बातकी सत्यता का अनुभव हर घड़ी होनेपर भी ऐसी ज़रा ज़रा सी बातोपर दुःख करनेसे दुःख करनेवाले मनुष्यके हृदयकी अधीरता, मनकी कोमलता और बुद्धिकी अपक्वता तथा संकीर्णता सिद्ध होती है । आज पिताकी मृत्यु हुई, कल चचाकी होगी और परसों भाईकी होने वाली है, तात्पर्य इस मृत्युलोकमें जो आता है वह अवश्य ही लौट जाता है ; इस बातको भली भांति जानकर भी रोते बैठना मानो अपनी मूर्खतासे गत आत्माका उपहास करना, परमात्माका अपराध करना तथा प्रकृतिका अपमान करना है । इसलिये मेरा यह कहना है कि अब तुम दुःख करना छोड़ दो और मुझे अपने पिताकी जगह समझो । तुम्हें किसी बातकी कमी न रहेगी । मेरे सारे राज्य तथा सम्पत्तिके तुम ही एक मात्र अधिकारी हो; यह बात मैं अपनी सारी प्रजा तथा सरदारोंको विदित कर देता हूँ । मेरे भी अब दूसरा पुत्र है कहां ? भतीजा, पुत्र जो कुछ हो तुम ही हो । मंगलापुरकी पाठशालाको लौट जानेका तुम्हारा विचार हमलोगोंकी इच्छाके विलकल विरुद्ध है । हमारा बारबार तुमसे यही कहना है कि यहाँ रहकर For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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