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दृश्य ७] बलभद्रदेशका राजकुमार ।
१४१ थोड़ासा तेल खरीदा है; वह तेल इतना जालिम है कि अगर छुरी उसमें डुबोकर किसीके बदनमें जरा सी भोंक दी जाय तो मनुष्यः फिर कभी जी ही नहीं सकता । चाहे संसारकी समस्त जड़ी बूटियोंका सत्व उसे खिला दीजिये, कुछ भी फायदा न होगा। मैं अपनी तलवारकी नोक उसी जहरीले तेलमें डुबोकर रक्खे रहूँगा ; जिसमें उसे उसका हलका जखम होनेसे भी वह मर जाय-बच न सके ।
रा०-इस विषयमें हमें और भी सोच लेना चाहिये । इस कामके लिये समय और सामग्री हमारे अनुकूल हैं या नहीं, इस बातका भी विचार कर लें । यदि हमें इसमें सफलता न हुई और हमारी असावधानीसे हमारा सारा भेद खुल गया तो फिर अच्छा न होगा। इसलिये एक और भी चाल सोच रखनी चाहिये ; अगर पहिली चाल काम न आई तो तुरन्त दूसरी काममें लाई जायगी । अच्छा, ज़रा ठहरो, मुझे सोच लेने दो । ( सोचता है । ) खेलमें वार बचानेकी शर्त तो अवश्य ही रहेगी ; और दूसरी क्या तरकीब सोचनी चाहिये ?-हाँ, ठीक है; खेलते खेलते जब तुम लोग पसीनेसे तर हो जाओगे और गला सूखने लगेगा तब जयन्त पोनेके वास्ते शर्बत माँगेगा । उस समय मैं उसे विष मिलाया हुआ शर्बत पिला दूंगा । फिर क्या ? अगर तुम्हारी जहरीली तलवारसे वह बच भी जायगा तो कोई चिन्ता नहीं मेरा शर्बत ही उसका काम तमाम कर देगा।
.. (रानी प्रवेश करती है।) रा०-(घबरा कर ) क्यों, प्यारी विषये, क्या हुआ ?
रानी-क्या कहूँ ? संकट आते हैं तो एकपर एक आते ही जाते हैं । हाय ! चन्द्रसेन ! तुम्हारी बहिन डूब गई !
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