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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० जयन्त .[अंक ४ हैं 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'; यह बहुत ठीक है । अगर कभी कोई बात करनेकी इच्छा हो तो उसे उसी दम पूरा करना चाहिये, नहीं तो फिर कामके बदले उसकी चर्चा फैल जाती है; चार लोग सुनते हैं ; और खुराफ़ातियोंको अपना दाँव साधनेका मौका मिलता है, जिससे इच्छा जहाँकी तहाँ रह जाती है । और फिर पछतानेसे छाती जलानेके सिवा और क्या होगा ! तो बतलाओ क्या इरादा है ? जयन्त लौट आया है; अब खाली बकवाद ही करोगे या कोई काम करके दिखा दोगे कि तुम अपने पिताके असल बेटे हो ? चन्द्र०-देवमन्दिरमें उसका गला काढूँगा ? . रा.-क्या देवमन्दिरमें खून करनेसे पुण्य होगा ? अगर खून करना है तो उसमें पाप पुण्यका विचार न करना चाहिये । अगर बदला चुकानेके लिये तुम खून करोगे तो उसमें कुछ भी पाप नहीं है । परन्तु, चन्द्रसेन ! अगर तुम यह काम किया चाहते हो तो अभी अपने घरमें छिपे रहो । जयन्त जब लौट आया है तब उसे तुम्हारे यहाँ आनेकी खबर लग ही जायगी । मैं लोगोंसे कह दूँगा कि वे तुम्हारे उस गुणकी खूब प्रशंसा करें, जिसमें तुम्हारा और भी नाम हो । फिर तुम्हारे और उसके पटा खेलने में उसकी ओरसे ऐसी बाजी लगाऊँगा जिसमें तुम्हारी ही जीत हो । वह बहुत ही सीधा सादा और उदार होनेके कारण हथियारों की कुछ भी जाँच न करेगा । बस, इस तरह जब वह तुमसे लड़नेको खड़ा हो तब तुम अपनी सच्ची तलवारसे अपने पिताकी हत्याका बदला चुका लेना। चन्द्र०-बहुत ठीक ; और इस कामके लिये मैं अपनी तलवार माँज पूँजकर खूब चमचमाती बना रक्तूंगा। मैंने एक लुच्चे हकीमसे For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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