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१४० जयन्त
.[अंक ४ हैं 'अति सर्वत्र वर्जयेत्'; यह बहुत ठीक है । अगर कभी कोई बात करनेकी इच्छा हो तो उसे उसी दम पूरा करना चाहिये, नहीं तो फिर कामके बदले उसकी चर्चा फैल जाती है; चार लोग सुनते हैं ;
और खुराफ़ातियोंको अपना दाँव साधनेका मौका मिलता है, जिससे इच्छा जहाँकी तहाँ रह जाती है । और फिर पछतानेसे छाती जलानेके सिवा और क्या होगा ! तो बतलाओ क्या इरादा है ? जयन्त लौट आया है; अब खाली बकवाद ही करोगे या कोई काम करके दिखा दोगे कि तुम अपने पिताके असल बेटे हो ? चन्द्र०-देवमन्दिरमें उसका गला काढूँगा ? . रा.-क्या देवमन्दिरमें खून करनेसे पुण्य होगा ? अगर खून करना है तो उसमें पाप पुण्यका विचार न करना चाहिये । अगर बदला चुकानेके लिये तुम खून करोगे तो उसमें कुछ भी पाप नहीं है । परन्तु, चन्द्रसेन ! अगर तुम यह काम किया चाहते हो तो अभी अपने घरमें छिपे रहो । जयन्त जब लौट आया है तब उसे तुम्हारे यहाँ आनेकी खबर लग ही जायगी । मैं लोगोंसे कह दूँगा कि वे तुम्हारे उस गुणकी खूब प्रशंसा करें, जिसमें तुम्हारा और भी नाम हो । फिर तुम्हारे और उसके पटा खेलने में उसकी ओरसे ऐसी बाजी लगाऊँगा जिसमें तुम्हारी ही जीत हो । वह बहुत ही सीधा सादा और उदार होनेके कारण हथियारों की कुछ भी जाँच न करेगा । बस, इस तरह जब वह तुमसे लड़नेको खड़ा हो तब तुम अपनी सच्ची तलवारसे अपने पिताकी हत्याका बदला चुका लेना।
चन्द्र०-बहुत ठीक ; और इस कामके लिये मैं अपनी तलवार माँज पूँजकर खूब चमचमाती बना रक्तूंगा। मैंने एक लुच्चे हकीमसे
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