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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ५] बलभद्रदेशका राजकुमार। रा-विशालाक्ष ! उसके साथ साथ जाओ; और उसपर निगाह रक्खो। (विशालाक्ष जाता है।) ___अति दुःखका यही परिणाम होता है । पिताकी मृत्यु होनेसे ही उसे यह दशा प्राप्त हुई है । प्रिये विषये ! जव विपत्तियां आती हैं तब वे अकेली नहीं आती-दलबलके सहित आकर मनुष्यपर आक्रमण करती हैं । पहिली बात यह है कि उसका पिता मारा गया; दूसरे तुम्हारे पुत्रको उसके भयङ्कर उपद्रवोंके कारण विदेश भेजना पड़ा; धूर्जटिकी मृत्युके विषयमें लोगोंका ख्याल कुछ और ही हो गया है, जिससे वे मनमानी गप लड़ा रहे हैं । उसके खूनका बिना योग्य न्याय किये झट पट उसे गाड़ गूड किनारे किया । इसी अक्सरपर विचारी कमलाका क्वेिक जाता रहा-वह पागल हो गई। जिसमें विवेक नहीं वह चित्र या पशुके बराबर है । इतनेफर भी मैं हिम्मत न हारता ; पर सुना है कि उसका भाई चन्द्रसेन उत्तालसे चुपचाप लौट आया है और पिताकी अकस्मात् मृत्यु हो जानेसे बहुत दुःखी हो गया है; और शहरके निरुद्योगी लोगोंने भी उनकी मृत्युके विषयमें झूठ सच बातें कहकर उसके कान भरनेमें बाकी नहीं छोड़ा । खूनीका ठीक ठीक पता न लगनेसे लोग मुझे ही अपराधी बतला रहे हैं । प्रिये ! इन सब बातोंसे जान पड़ता है कि इस समय मैं प्रत्यक्ष तोपके मुहानेपर खड़ा हूँ। (भीतर शोर होता है। ) रानी-आह ! यह कैसा शोर है ? रा०-कहाँ हैं मेरे रजपूत सिपाही ? उनसे कह दो, फाटकपर खूब सावधानीसे पहरा दें । ( एक भद्र पुरुष प्रवेश करता है । ) क्योंजी, यह कैसा शोरगुल सुनाई पड़ता है ? For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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