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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ३] बलभद्रदेशका राजकुमार। और जानवर पालते हैं ; और अपना शरीर कीड़ोंके लिये पोसते हैं । इन कीड़ोंके लिये क्या मोटा ताज़ा राजा और क्या दुबला पतला भिखारी दोनों एकसा हैं । यदि कुछ भेद है तो बस इतना ही, कि एक पूरी और दूसरी कचौरी । बस, अन्तमें सबकी यही गति है। रा०-हा: ! जयन्त.--कीड़े राजाको खा जाते हैं, मछली कीडोंको खाती है, और भिखमङ्गे मछली खाते हैं। रा०—फिर ? तुम्हारा मतलब क्या है ? जयन्त-कुछ नहीं ; मैंने केवल यही दिखलाया कि राजा महाराजा भिखमङ्गोंकी अंतड़ियोंमेंसे होकर कैसे बाहर आते हैं। रा.--खैर, यह तो कहो धूर्जटि कहाँ हैं । जयन्त-स्वर्गमें । किसी दूतको वहां ढूंढने भेज दीजिये । अगर वहां पता न लग सका तो नरकमें ढूंढने आपको ही जाना पड़ेगा। और सच बात यह है कि यदि एक महीनेके भीतर आपको उनका पता न लगानो सोढ़ीपरसे बरामदेमें जाते हुए आपको उनकी महक आवेगी। रा.-( नौकरोंसे ) जाओ, एक बार वहां भी खोजो। __ जयन्त-डरिये मत, जबतक आप नहीं जायंगे तबतक वे वहांसे भाग नहीं सकते । ( नौकर जाते हैं। ) रा-जयन्त ! तुम्हारे इस भयङ्कर कामका हमें बड़ा दुःख है। खास कर तुम्हें बचानेके लिये हमने यह तदबीर सोची है कि अब बहुत जल्द तुमको यहांसे कहीं विदेश भेज दिया जाय ; इस लिये अब तुम श्वेतद्वीप जानेके लिये तैय्यार हो जाओ । जहाज तैय्यार है ; हवा For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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