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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य १ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । ११५. सारा दोष मेरे ही माथे आवेगा । लोग यही कहेंगे कि पागलको इन्होंने स्वतन्त्र क्यों छोड़ दिया ; बन्धनमें क्यों नहीं रक्खा ? हाय ! प्रेमपाशमें फंसकर हम लोगोंने उस ओर दुर्लक्ष्य किया; बहुत बुरा किया | बदनामी के डरसे छिपाया हुआ भयङ्कर रोग जैसे प्राणको ले बीतता है, वेसे ही इस पागलपनका रोग छिपा कर हम जान बूझकर अपनी दुर्दशा कर रहे हैं। ख़ैर, वह गया कहाँ ? रानी—उस लाशको लेकर कहीं गाड़ने गया है । नाथ ! उसका पागलपन कुछ विचित्र है ! उसने पागलपनकी लहरमें उन्हें मार डाला सही, पर पीछे से अपने कियेपर रोने और पछताने लगा । लोहे की खानमें जैसे सोना बीचही में चमक उठता है वैसे ही पागलपन में उसकी बुद्धि बीचही में चमकने लगती है । रा०-- अच्छा, आओ चलें । सबेरा होते ही मैं उसे कहीं विदेश भेज दूंगा । अब इस नीच कामको हमें अपने अधिकारबलसे या किसी और युक्तिसे छिपाना चाहिये । विनय ! ( नय और विनय फिर प्रवेश करते हैं ।) मित्रो ! जयन्तने अपनी माके महलमें हमारे मन्त्री धूर्जटिका खून किया, और उनकी लाशको वह कहीं घसीट ले गया है; इसलिये तुम दोनों अपने साथ कुछ दूत लेकर जाओ, और उस लायका पता लगाकर उसे स्मशान में ले चलो । जयन्तसे डाँट डपट न करनासे बातें करो । अच्छा, अब जल्दी जाओ । (नय और विनय जाते हैं । ) प्रिये ! चलो चलें ; और अपने राजनीतिज्ञ मित्रोंको बुलाकर जो घटना हुई वह, और अब आगे हमारा विचार क्या है वह, उन्हें कहें और उनकी सम्मति लेकर काम करें । यह सही है कि तोपके गोलेकी तरह बदनामीका जहरीला तीर भी निशानपर जा गिरता है For Private And Personal Use Only - सभ्यता ----
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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