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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ [ अंक ४ जयन्तचौथा अंक। -:0:- -- पहिला दृश्य । स्थान-राजभवनका एक कमरा । सजा, रानी, नय और विनयका प्रवेश । रा०-प्रिये ! तुम ऐसी ठंढी सांस क्यों ले रही हो ? कहो, क्या हुआ ! मुझे बतानेमें कोई चिन्ता नहीं है । तुम्हारा जयन्त कहाँ है ? रानी-महाशयो ! थोड़ी देरके लिये आप लोग बाहर जाइये ; हमें कुछ गुप्त बातें करनी हैं । (नय और विनय जाते हैं।) हाय ! प्राणनाथ ! आज मैंने बड़ी विचित्र घटना देखी। रा०-विचित्र घटना ? जयन्तकी तबियत तो अच्छी है ? रानी--महाराज ! आंधी आनेपर समुद्रकी जो दशा होती है ;. बस, ठीक उसकी इस समय वही दशा है। मैं उसे उसके पागलपनका कारण पूछ रही थी कि बीचहीमें परदेमें किसीकी आवाज़ सुनाई पड़ी। आवाज सुनते ही झट म्यानसे तलवार निकाल 'चूहा चूहा' कहकर वह चिल्ला उठा और पागलपनकी लहरमें उसने उस बिचारे बुड्ढेकी हत्या कर डाली। रा०-आह ! यह कैसा घोर काम ! यदि उस समय मैं ही वला होता तो मेरी भी वही दशा होती ! इसे स्वतन्त्र छोड़ देनेसे, क्या मेरो, क्या तुम्हारी और क्या किसी औरकी-हरएक मनुष्यकी जानको खतरा है। हाय ! अब इस घोर कर्मका क्या उत्तर दिया जायगा ? For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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