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३१२ जयन्त
[अंक ३ होगी, और जब तुम ईश्वरसे प्रार्थना करोगी तब मैं भी अपनी मा तुमसे बालककी तरह आशीस मांगूगा । (धूर्जटिकी तरफ इशारा कर ) इस बेचारेपर मुझे बड़ी रहम आती है; पर क्या करूं ? परमात्माही चाहता है ! उसीकी इच्छासे इस दुष्टने मुझे कष्ट दिये; अब उसीकी इच्छा है कि मैं इसकी खबर लूं। अब इसे गाड़नेकी फिक्र करता हूँ। तुम मत डरो। मैं इसका जिम्मेवार हूँ। मैं जो इतना निठुर हो रहा हूं इसका कारण यह है कि फिर हम लोगोंमें स्नेह बना रहे । पहिले दुःख फिर सुख-इसीमें आनन्द है। पर हां, मैं तुमसे एक बात कह देता हूँ ।
रानी-क्या ?
जयन्त-तुमसे जो करनेके लिये कहा है वह कभी न करना । वह नशैल आज तुमसे मिलेगा--बड़े प्रेमकी बातें करेगा-फिर तुम उसके कमरेमें जाओगी । वहां "प्राणप्रिया' कहकर वह मीठी मीठी बातें करेगा; गालपर हाथ फेरेगा; चुंबन लेगा, गले लगावेगा। फिर क्या पूछना है तुम्हारा दिल पानी पानी हो जायगा । और जब वह दगाबाज़ तुमसे पूछेगा तो तुम यह कहोगी कि "जयन्त सचमुचमें पागल नहीं है; उसने पागलपनका स्वांग लिया है" और जो जो बातें अभी हुई उसका भीरत्ती रत्ती हाल कह दोगी, इसमें सन्देह नहीं । बस, ऐसाही करना चाहिये; क्योंकि आप जैसी सुन्दर, गंभीर और बुद्धिमती रानी ऐसे मेंढक, ऐसे मशहूर चमगादड़ और ऐसे नामी कौएसे इतने महत्वकी बात कैसे छिपा सकती हैं ? कभी नहीं ! भला ऐसा काम कौन करे ! अपनी अकलको हवा खाने मेज दीजिये; गंभीरताको तलाक दे दीजिये ; और दूसरेके कार्यमें विघ्न डालनेके लिये कोई ऐसी तदबीर कीजिये कि आपही की नाक कटे ।
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