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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ४ ] बलभद्रदेशका राजकुमार । १११ जयन्त-भ्रम ! तुम्हारी जैसी मेरी नाड़ी भी ठीक चल रही है-उसमें कोई फर्क नहीं । मैंने जो कुछ कहा सही सही कहा कोई पागलपनकी बात न कही । यदि तुम्हें विश्वास न हो तो कहो मैं फिर उन बातोंको वैसेदी दोहरा दूं। क्या पागल ऐसा कर सकता है ? अपने कुकर्म छिपाने के लिये मेरा कहना पागलपनकी बकवाद मत जानो । अपना अपराध आप न देखोगी तो सारा शरीर सड़ जायगा -- उसमें कीड़े पड़ेंगे | ईश्वरके सामने अपने अपराध कबूल करो; कियेपर पछताओ; आगेकी सुध लो; और अपने अपराधोंको छिपाने की चेष्टा कर अपराधपर अपराध मत करो । इस सच्ची सलाहके लिये मुझे माफ करो; क्योंकि समय ही ऐसा विपरीत है कि सज्जनों को दुर्जन से माफी मांगनी पड़ती है- नहीं नहीं - काम पड़नेपर उनकी जूतियाँभी उठाने के लिये तैयार रहना पड़ता है । 1 रानी - हा ! जयन्त ! मेरा कलेजा काटकर तूने उसके टुकड़े कर डाले | जयन्त--अच्छा तो खराब टुकड़ा फेंक दो, अच्छेकी सोहबत करो | मैं जाता हूं; पर मेरे चाचाके कमरे में न जाना । अगर तुममें वह गुण न भी हो तो कमसे कम वह लोगोंको मालूम न होना चाहिये । इस नीच ढोंगसे नीच आदतें अपनीसी हो जाती हैंउनसे फिर मन बेचैन नहीं होता - सही है; पर ऐसे ढोंगसे एक फायदा यह है कि लोगों में बेइजती नहीं होती । कोशिश करो तो सब कुछ बन जायगा । क्योंकि अभ्याससे मन ठिकाने आ जाता हैस्वभाव पलट जाता है— बुरी आदतें छूट भी जाती हैं । अच्छा, जाता हूं । अपना स्वभाव, अपनी आदत छुड़ानेकी जब तुम्हें इच्छा मैं • For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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