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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य ३ ]. बलभद्रदेशका राजकुमार । १०१ चाहिये । राजा अकेला नहीं मरता; अपने साथ कई एकोको ले बीतता है । राजाकी मृत्युको हम भँवरकी उपमा दे सकते हैं; जैसे भवर अपने इर्द गिर्दकी बस्तुओंको डुबा देता है वैसे राजाकी मृत्यु भी कई लोगों के नाशका कारण बनती है । राज-जीवन एक बड़ा भारी चक्र है जो ऊँचे पर्वतपर गड़ा है, और जिसके दाँतों में हज़ारों छोटी छोटी चीजें नहीं हैं। जैसे उस चक्रके, पर्वतके नीचे आ गिरनेसे उसमें जड़ी हुई सारी चीजें उसीके साथ टूट फूटकर नष्ट हो जाती हैं; वैसे ही इस राज-जीवनचक्र के साथ साथ सारे राज्यके नष्ट हो जानेका डर रहता है। तात्पर्य, राजाके पीछे उसकी सारी प्रजाको दुःख उठाना पड़ता है । रा०-- खैर, तुम लोग अब जल्द तैय्यार हो जाओ; क्योंकि इस दिन दिन बढ़ने वाले डरकी जड़ को काट ही डालना अच्छा है । नय, विन० -- महाराज ! हमलोग अभी तैय्यार हो जाते हैं । ( नय और विनय जातें हैं । ) ( धूर्जटि प्रवेश करता है | ) धू० - महाराज ! वह अपनी मार्के महलमें जा रहा है । मुझे आज्ञा हो तो मैं उसी जगह कहीं छिपकर उनकी सारी बातें सुन हूँ । मुझे आशा है कि रानीसाहब उसके हृदयकी थाह जरूर ले लेंगी ; पर,. शायद अगर वे पुत्र-प्रेममें आकर उससे मिल जायँ, जैसा कि आप कहते हैं तो, उसकी खबर भी तो हमें हो जानी चाहिये; इसलिये छिपे र उनकी बातें सुन लेना बहुत ही जरूरी है। आप निश्चिन्त रहें, मैं आपके सोनेसे पहिले ही आपसे मिलकर वहाँका सारा हाल कहूँगा । रा० - इसके लिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। (धूर्जटि जाता है) आह ! मैंने ऐसा घृणित पाप किया कि जिसकी दुर्गन्ध स्वर्मतक पहुँच For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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