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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० [अंक ३ जेमें छुरेके समान चुभने वाली बातें बोल; पर इन हाथोंको उसका प्रत्यक्ष व्यवहार न करने दे ! विचारोंमें और बातोंमें भेद रखनसे लोग मुझेर दाम्भिक तो अवश्य ही कहेंगे; पर उपाय क्या है ? हे. जगत्पिता . ! जब भी मैं उसके . कलेजें में चुभनेवाली बातें उसे सुनाऊँ . भी उसपर शस्न उठानेकी दुबुद्धि मुझे न दे ! (जाता है । ) तीसरा दृश्य। स्थान-राजभवनका एक कमरा । राजा, नय और विनय प्रवेश करते हैं । रा- अब तो वह मेरे चित्तसे बिल्कुल उतर गया है ; और ऐसे पागळको वहाँ स्वतन्त्र छोड़ देनेमें हमारी कुशल भी नहीं है । इसलिये तुम लोग उसे साथ लेकर श्वेतद्वीप जानेकी तैय्यारी करो। मैं अभी एक. खरीता तैय्यार किये देता हूँ , उसे भी साथ लेते जाना । उसे ऐसी दशामें यहाँ रख छोड़नेसे.हमारे सारे राज्यको इसका प्रायश्चित्त भोगना पड़ेगा। - विन:-हमलोम अभी तैय्यार हो जाते हैं । महाराज ! जिनका जीवन केवल आपहीपर निर्भर है उनकी रक्षाकी चिन्ता करना सच, मुच आपका पवित्र कर्तव्य है। .. . नय-महाराज ! जिसका इस संसारमें कोई भी नहीं-जो. अकेला है उसे भी हर उपायसे. अपने प्राणों की रक्षा करनी चाहिये । फिर आप जैसे रजा. महाराजाओंपर तो. हाखों मनुष्योंका : जीवन निर्भर है; इसलिये आपको अपनी रक्षाके लिये और भी सावधानी रखनी For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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