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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृश्य २] बलभद्रदशका राजकुमार । तीन सौ मेढ़कोंको भट्ठोमें रख्की हुई और साँप तथा बिच्छू तले हुए तेलमें तीन बार और भैसेके गरम गरम खूनमें तीनबार डुबोकर निकाली हुई यह शीशी ! खून करनेका ऐसा अच्छा सरंजाम शायद ही कभी किसीने किया होगा ! आ: हाः। चारों ओर सन्नाटा छा गया है ! पेड़की पत्ती तक नहीं खड़खड़ाती ! निद्रादेवीने सारी सृष्टिको मानों अपनी गोदमें सुला लिया है ! ( जरा सोचकर ) हाँ ; अब क्यों डरते हो ? राज्य और स्त्री हिम्मत किये बिना नहीं मिलती ! रे विषोंके मिश्रण ! तुझसे मेरी यही प्रार्थना है कि तेरा और इस सोये हुए राजाके कानोंका संयोग होते ही तू अपने विचित्र प्रतापका नमूना दिखा दे ! हमारे ऐसे विलक्षण साहसी पुरुषोंको आश्रय देनेवाला तेरे सिवा और कौन है ? अच्छा, चल, और अपना भयंकर प्रताप दिखा ! ( राजाके कानोंमें विष डालता है । ) - जयन्त-देखिये, महाराज ! इस नरपिशाचने राजाकी सम्पत्ति हरण करनेके लिये उसके कानोंमें विष डाल दिया । इसका नाम है 'मातंग' । यह कथा सारी दुनिया जानती है और सागरांती भाषामें लिखी हुई है। अब आप बहुत जल्द देख लेंगे कि यह हत्यारा उसकी स्त्रीको कैसे अपने बसमें कर लेता है ! . कमला-देखिये, महाराज उठ खड़े हुए ! जयन्त-क्या झूट मूठकी हत्या देखकर है। रानी-प्राणनाथ ! कैसी तबियत है ? धूल-बस, अब खेल एक दम बन्द कर दो । रा०-चलो, उठो, रोशनी लाओ, जल्दी करो । सबलोग-रोशनी, रोशनी, मशाल, मशाल ! For Private And Personal Use Only
SR No.020403
Book TitleJayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanpati Krushna Gurjar
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1912
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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