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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार। इसमें कीड़े पड़ जायँ । मेरा मन दिन रात बेचैन रहे ! सुख और और विश्राम, ये दोनों सदाके लिये मुझसे अलग हो जाएँ ! मेरी आशा दुराशामें बदल जाय ! कैदियोंकी सी मेरी दुर्दशा हो ! सारी सुखहारक बातें मेरी अभिलाषाओंको दबाकर उन्हें नष्ट भ्रष्ट कर डालें; अन्ततक मुझको अनाथ और दुःखिया ही बनाए रहें; और इस लोक तथा परलोकमें मुझे सता सताकर नरकलोकमें ढकेल दें !
जयन्त-यदि यह अपनी इन कठोर प्रतिज्ञाओंका भंग करे तो ?
ना. रा०-प्रिये ! तुमने तो आज बड़ी बड़ी प्रतिज्ञाएं कर डाली हैं । अस्तु, थोड़ी देरके लिये मुझे यहाँ अकेला छोड़ तुम. ज़रा बाहर चली जाओगी तो बहुत अच्छा होगा । मुझे बहुत ही थकावट जान पड़ती है। इस लिये मैंने यह सोचा है कि आजका सारा दिन मैं सोनेमें ही बिताऊँ । ( सोता है । )
ना० रा०-परमात्मा करे, सोनेसे इनके मनकी पीड़ा दूर हो ! और हममेंसे किसीको विरह-दुःख न भोगना पड़े ! (जाती है।)
जयन्त-मा ! नाटक कैसा है ? रा-मेरी समझमें रानीको ऐसी कठोर प्रतिज्ञा न करनी थी। जयन्त-अः, इसमें बुराई ही क्या है ? वह उसे निभा लेगी।
रा०—यह दृश्य कैसा था ? तुमने देखा या नहीं ? इससे कोई नुकसान तो न होगा ?
जयन्त-छि:, छि:, इससे भला क्या नुकसान होगा ? यह सब नकल है । असल कुछभी नहीं ; सब बनावटी है । विष भी बनावटी है।
रा.-इस खेलका नाम क्या है ?
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