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दृश्य २] बलभद्रदेशका राजकुमार । नीच काम करेगी। जो स्त्री अपने पतिकी हत्या करती या कराती है वह भले ही दो छोड़ दस पुरुषोंको अपने पति बना ले; पर जो सच्ची पतिव्रता स्त्री है, क्या वह भी कभी ऐसा नीच काम कर सकती है ? हे परमेश्वर ! अगर मैं दूसरा पति करूँ तो मेरा सत्यानाश हो !
जयन्त-(स्वगत) इसीको कहते हैं, 'विषकुम्भम् पयो मुखम्'।
ना. रानी-लोग दूसरा विवाह करते हैं किस लिये ? प्रेमसुखके लिये नहीं-वैभव-सुख भोगनेके लिये । छि: ! आग लगे ऐसे वैभवको । प्राणनाथ ! क्या आप यह विश्वास करते हैं कि आपके मरनेपर मैं पराये पुरुषके स्पर्शसे अपने शरीरको भ्रष्ट करके आपके कुलमें धब्बा लगाऊँगी ? ।
ना. रा०-प्रिये ! तुम्हारी बातोंपर तो मेरा विश्वास है ही; पर मनुष्य अपने निश्चयका प्रायः आप ही भंग कर देते हैं । काम आरम्भ करनेके समय मनमें जैसा उत्साह रहता है, वैसा ही उत्साह अन्ततक नहीं बना रहता। मुँहसे बोल देना बहुत सहज है, पर वैसा करना कठिन होता है । फल जबतक कच्चा रहता है तभीतक वह पेड़में लगा रहता है; और जब वह पक जाता है तब तुरन्त आप ही आप नीचे गिर पड़ता है । जैसे ज़रूरतपर हम लोग कर्जा तो ले लेते हैं, पर जरूरत निकल जानेपर हम उसे चुकाना भूल जाते हैं; वैसे ही हम मनोविकारों के अधीन होकर मनमानी प्रतिज्ञा तो कर डालते हैं पर उनका जोश कम हो जानेपर हम अपनी प्रतिज्ञा भूल जाते हैं। सुख या दुःखके वेगमें जो प्रतिज्ञा की जाती है, उसकी याद मनुष्यको तभीतक रहती है जबतक
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