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बलभद्रदेशका राजकुमार ।
መ
दृश्य २ ]
धू० -- ( राजासे ) सुनिये महाराज ! ज़रा उनकी बातें तो
सुनिये ।
जयन्त क्यों बीबी ? क्या मैं आपकी गोद में लेट सकता हूँ ? ( कमलाके पैरोंके पास बैठ जाता है । ) कमला- - नहीं नहीं; आप यह क्या करते हैं ?
-
जयन्त - डरिये नहीं; मैं और कुछ भी न करूँगा ;- -केवल आपकी गोद में अपना सिर रखना चाहता हूँ ।
कमला- - आज तो आप बहुत खुश मालूम होते हैं ! जयन्त — कौन, मैं ?
कमला – जी हाँ ; आप |
जयन्त- मैं तो आपके चरणोंका दास हूँ । खुश न रहूँ तो काम कैसे चले ? देखिये, मेरी माका चेहरा कैसा खुश है ! और मेरे पिताजीको मरे अभी पूरे दो महीने भी नहीं हुए ।
कमला नहीं महाराज ! दो और दो चार महिने बीत गए । जयन्त· -सच ? चार महीने बीत गए ! ओहो ! इतने दिन बीत जानेपर भी वे मेरा पीछा नहीं छोड़ते ! ठीक है; यदि कोई बड़ा आदमी मरे तो उसकी याद कमसे कम चार छः महीनेतक बनी रह सकती है । फिर भी उन्हें अपनी याद कायम रखनेके लिये अपने पीछे कोई जीती जागती शकल छोड़जानी चाहिये ; नहीं तो उनकी उन बेवारिस मुदकी सी दशा होती है जो मरनेपर गिद्धोंकी खुराक बनते हैं; और जिनकी फिर कोई सुध नहीं लेता ।
( बाजा बजता है; और नाटकका दृश्य दिखाना आरम्भ होता है। ) एक राजा और एक रानी प्रवेश करते हैं । दोनों बड़े प्रेमसे एक
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