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जैन विवाह विधि
मंडप का वर्णन है और उस मंडप के भीतर जो वेदिका (चवडी) होती है उसकी स्थापना विधि आचार दिनकर ग्रन्थं में है, लग्न या महोत्सव के मौके पर मंडप का मुहुर्त किया जाता है । वर के घर पर मंडप का मुहुर्त नहीं होता, जहां लग्न होने का हो वहां वेदिका प्रतिष्ठा मुझब करने में कोई हर्ज मालुम नहीं होता है, अगर लग्न के दिन ही मंडप का मुहुर्त किया जाये तो ज्यादा बेहतर होगा ।
चवरी बांधने लायक ६-८ या १० हाथ समचोरस जमीन पसन्द कर उसको शुद्ध करावें और उसके बीच में वेदिका बनावे, उसके चारों तरफ तीन-तीन बांस खड़े कर उसमें सोने के, चांदी के, तांबे के और मिट्टी के साथ-साथ छोटे बड़े घड़े एक दुसरे के उपर रखने चाहिये। उसके चारो तरफ ऊपर बन्ध लेकर कपड़े से या लकड़े से तोरण बांधे, और दक्षिण तरफ अशोक वृक्ष (अशोकापल्लवका तोरण बांधे) । वेदिका के मध्य भाग में अग्नि स्थापना के लिये ऐसे त्रिकोणाकार अग्निकुंड बनावे । बाद वर कन्या को दक्षिण द्वार से प्रवेश करवाकर बायीं (डाबी) और दाहिनी (जिमणी) तरफ पुर्व दिशा सम्मुख पट्टे पर बिठावें यानि भीतर प्रवेश करते बायी तरफ वर और दाहिनी तरफ कन्या बिठावे । उस वक्त विवाह विधि कारक नीचे मुजब समान तैयार रखें।
चवरीका सामान शुद्ध जल का कलश, श्रीफल ३, चन्दन, अक्षत, सुपारी, पुष्प, मधु (शहद)।
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