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जैन विवाह विधि
लग्न निश्चय लग्न के कुछ रोज पहले दोनों पक्ष के संबंधी इकट्ठे होकर ज्योतिषशास्त्री को बुलावें और उसके पास लग्न लिखाकर उस पर कुंकुम के छांटे फूल पान सुपारी श्रीफल पैसा वगैरह से पूजा करे और ज्योतिषी का अच्छा सत्कार करे (इस प्रसंग पर मांगलिक गुड़ बेंचा जाता है, और वर को पेहरामणी भी दी जाती है) ।
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मातृ का स्थापन लग्न के पांच या सात रोज पहले शुभ मुहुर्त में वर और कन्या के वहां मातृ का स्थापन यानि कुलदेवी की स्थापना करनी चाहिये । बाद उसकी पूजा कर वर अथवा कन्या को पाट पर बिठाकर उनकी माता, उनके ललाट में तिलक करें चावल भी उस पर लगावे और हाथ पावं के कुंकुंम छिडक कर श्रीफल, पान, सुपारी तथा रूपये से खोबा (अंजलि) भरा दे और चार सुहागिन स्त्रियां तिलककर पीठी की मालिश कर अक्षत से वधाती है । जिनको पान सुपारी देकर उनका सम्मान किया जाता है। यहां पर कोरे शराबलो मे जवारे बोने का भी अधिकार है । मातृका स्थापना के दिन से लगाकर लग्न के दिन तक हमेशा सुगन्ध तेल और पीठी लगाकर वर को स्नान करावें तथा उसको जिन मंदिर में देव पुजा भी कराते रहे।
मण्डप का मुहर्त मंडप का मुहुर्त यह वेदिका का खास मुहुर्त है। उसकी विधि आचार दिनकर ग्रन्थ मे नहीं लेकिन श्री आदिनाथ चरित्र में विवाह
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