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जैन विवाह विधि
पहले अभिषेक का मंत्र ॐ अर्ह इदमासनमध्यासीनौ स्वाध्यासीनौ स्थिती सुस्थितौ तदस्तु वां सनातनः संगमः अर्ह ॐ ।
यह मंत्र बोलकर क्रियाकारक हाथ में धरो चावल लेकर नीचे मुजब वर कन्या के दोनो पक्ष (माता का पक्ष तथा पिता का पक्ष) के गोत्र आदिका नाम बोलना और आशीर्वाद देकर वर कन्या को धरो चोखें से बंधावें।
ॐ नमोऽर्हत्सिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यः ॐ अर्ह अमुकगोत्रीयः इयत्प्रवरः अमुकज्ञातीय अमुकवंशीयः प्रपौत्रः-पौत्रः-पुत्रः अमुक प्रदौहित्रः अमुकदोहित्रः अमुकमात्रीयः अमुकनाम । वरः ।
(इसमें वर का गोत्र वंश आदि बताया है।) अब कन्या के गोत्र वंश आदि का मंत्र पढ़िये -
अमुक गोत्रीया इयत्प्रवरा अमुकज्ञातीया अमुकवंशीया अमुक प्रपौत्री अमुक पौत्री अमुक पुत्री अमुक प्रदौहित्री अमुक दोहित्रो अमुक मात्रीया अमुक नाम्नी वर्या (कन्या) । तदेतयोर्वर्यावरर्यानिबिडो विवाहसंबंधोऽतु शांतिरस्तु तुष्टिरस्तु पुष्टिरस्तु धृतिरस्तु बुद्धिरस्तु धनसतानवृद्धिरस्तु अर्ह ॐ।
पीछे वर और कन्या के पास गंध पुष्प और नैवेद्य से अग्नि को पूजा करावे तथा उसमे व्रीहि पान सुपारी डलवावे ।
उसके बाद क्रियाकारक नीचे दर्ज किया हुआ मत्र पढकर कन्या को अगाड़ी रखकर वर के हाथ पर कन्या का हाथ रखवा कर वर और कन्या दोनों को अग्नि की पहली प्रदक्षिणा दिलावे ।
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