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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥ ४२ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir | शिवलह्यां जी, जीन उत्तम महाराज; पद्म प्रभुनें प्रणमंतां जी, लहीएं अवीचल राज भवीभा ॥ ५ ॥ ढाल ॥ २ ॥ प्रथम गोवाला तणें भवेंजी ॥ ए देशी ॥ मागशीर शुदि दशमी दिनें जी, कल्याणक छेरें दोय; अरजिन जन्मनें शीवलह्यां जी, ते प्रणमो सहु कोयरे भवीका; प्रणमो श्रीजिनचंद ॥ जस प्रणमें वासव वृंद रे भवीका० ॥१॥ ए आंकणी ॥ अग्यारश दिन मोटीको जी, जे दीन पंच कल्यांण; मल्ली जन्म व्रत केवली जी, अरव्रत नमिजीन नांण रे; भवीका० ॥ २ ॥ जनम्यां संभव चौदरों जी, पुनमें वली व्रत लीध; वदि दशमीथी चौदश लगेंजी, लागट छें प्रसिद्ध; भवीका० ॥३॥ पास जन्म वलि व्रत लीएं जी, चंद्र जन्म व्रत सार; शीतल केवल पामीयां जी, हवें पोशशुदि अवधार रे; भविका० ॥ ४ ॥ विमल केवल छठि दिनें जी, नवमीए शांतीने नांण; अजीत नांण अगीयारसें जी, लोकालोक सुजांण रे; भवीका० ॥ ५ ॥ चौदशें केवल उपन्युं जी, अभिनंदन जिनभाण; धर्म केवलि पूनमें जी, हवें वदिनुं मंडाण रे; भवीका० ॥ ६ ॥ छठें पद्म चवन भलुं जी, बारसनें दिन दोय; शितल जन्म मूनि थयां जी, तेरसें ऋषभ शीव होय रे; भवीका० ॥ ७ ॥ अमावास्यां For Pitvale And Personal Use Only पंच क० स्तवन. ॥ ४२ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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