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________________ ShiMahayeJainrachanaKeng www.kobateh.org. AR लादीन पामीयाजी, श्रेयांस केवल नाण; जीन उत्तम पद पद्मनेजी, प्रणमो भवीक सुजाण रे भवीका० सुंदर ॥ ८॥ ढाल ॥३॥ होसुंदर ॥ ए देशी ॥ सुंदर माह शुदिमां हवे जाणिएं, बे कल्याणक बीज हो; सुंदर ॥ अभिनंदन प्रभु जन्मीयां, केवल वासु पूज्यहो; सुंदर ॥ कल्याणक दिन गाइयें ॥ ए आंकणी ॥१॥ सुंदर त्रिज दीने पण दोय कह्यां, जनम वीमलने धर्म हो; सुंदर० चोथे वीमल जिन व्रत लहीएं, आठमें अजीतनो जन्महो; सुंदर०क० ॥२॥ सुं० नोमे अजीत दीक्षा लीएं, बारसें व्रत अभीनंदनहो; सुं० तेरसें धर्म चारित्रीआ, वदिमां सुंणि सुख कंदहो; सुं०क०॥३॥ सुं० छठे सुपासजी केवली, सातमें दोय कल्याणहो; सुं०; शिव पोहतां सुपासजी, चंद्रप्रभु लहें नाणहो; मुं० ० ॥४॥ सुं० नोमदीने सुविधि चव्यां, एकादशी आदि नांणहो; सुं०; बारसे दोय श्रेयांस जण्या, मुनी सुव्रत नांण जाणीहो; सुं० क०॥५॥ सुं० तेरसें श्रेयांस व्रतलिये,जाया चौदशे वासुपूज्यहो; सुं० अमावास्या वासु पूज्य व्रती, फागुण शुदि हवें बीजहो; सुं० क०॥६॥ सुं० अरचव्या चोथे मल्ली RERCIENCE For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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