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________________ SM Mahavam A kende Acha Sh Kailas Gyanmand गौशालो उपसर्ग, निष्फल देशनां जेहरे-सां० ॥ १२॥ मुल वीमाने रवी शशी आव्यां, चमरांनो उत्पात; ए श्रीवीर जिणेश्वर वारें, उपन्यां पांच वीख्यात रे-सां०॥१३॥ स्त्री तीरथ मल्ली जिन वारे, शीतलने हरी वंश; ऋषभ ने अठोत्तर सो सिद्धा, सुविधी असंजति सेसरें-सां०॥१४॥संख शब्दें मीलिया हरी हरिश्यु, नेमी सरने वारें; तिमप्रभु निच कुलें अवतरियां, सुरपति एम विचारें रे-सां०॥१५॥ __ ढाल-॥२॥ नदी यमुनाकें तीर उडे दोय पंखीयां ॥ ए देशी ॥ भव सत्तावीस थुल माहि त्रीजें भवें, मरीची कीयो कुल मद भरत यदा स्तवें; निच गोत्र कर्म बांधीउं तिहां तेवती, अवतरीया माहण कुल अंतिमां जिनपति॥१॥ अति अघटतुं एह थयुं थाशे नहीं, जे प्रसवे जिन चक्री | नीच कुले नहीं; एह अमारो आचार धरूं उत्तम कुले, हरिणगमेषी देव तेडाव्यों तत्क्षणें ॥२॥ | कहे माहणकुंड नयर जइ उचीत करों, देवानंदा नी कुखेंथी प्रभुने संहरो; नयरी क्षत्रीय कुंड राय | सिद्धार्थ गेहिनी, त्रीशला नामे धरो प्रभु कुंखे तेहनी ॥३॥ त्रीशला गर्भ लेइने धरो माहाणी उयरें, द ब्यासी रात व्यतीत कहे तेम सुर करें; माहणी देखें सुपन जाणुं त्रीशला हाँ, त्रीशलां सुपन लहे है For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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