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________________ ShiMahayeJainrachanaKendra www.kobatirth.org Achan Kailas Gyamandi SCRECACAN फेरा रे-प्रा०॥ ८॥ तीर्थ मालाए सुरत माहि, भाखी श्रुत आधार; सत्तरसें पंच्योत्तेर वरसें, दीवाली दीवसे सार रें-प्रा०॥९॥ तपागच्छ नायक वंछित दायक, श्री विजय ऋद्धि सूरी राजें, भाव धरीने भणिआं जिनवर, संघ सकल सुख काजें रें-प्रा०॥ १०॥ __ कलश-इय नमिय नरवर निखिल सुरवर किन्नर विजा हरा, मइ भत्ति जुत्ति ज हसतें थुण्यां। सासया जिणवरा; तप गच्छ भूषण विगत दूषण हंस विजय बुध सद्गुरु, शीश धीर विजयें सदा सुजयें भविअण पंकज दिनकरुं॥ ११॥ इति श्रीशाश्वत जिन तीर्थमाला संपूर्णः “अथ श्री महावीर स्वामिनां पंच कल्याणकनुं स्तवनम्" दुहा-शासन नायक शिवकरण, वंदु वीर जिणंद; पंच कल्याणक जेहनां, गाशुंधरी आणंद ॥१॥ सुणतां थूणतां प्रभुतणां, गुण गिरुआ एकतार; ऋद्धि सिद्धी सुख संपजे, सफल हुए अवतार ॥२॥ ढाल-॥१॥ बापलीए जीभडली, तुंकां नविं बोले मीटुं॥ ए देशी ॥सांभलजो सस्नेही सयणां, CH.COM For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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