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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobathrtm.org Acharya Shm KailassagarsuriGyanmandir थना. शांतिना-सात हाथ मानकें; तिर्यगूमां नित्य बिंबनु, पांचशे ध[से हो परिमाण प्रधानकें-प्रा०॥ २०॥ पंच क० __ढाल-॥ ४॥ कुंमति कांप्रतिमा उत्थापी ॥ ए देशी ॥ अतित अनागत वर्तमान, चउविशी . . . __ स्तवन. ॥३७ जिनजेह;विहरमान जिन वीश संप्रति, प्रय उठी प्रणमुंतेहरे-॥ प्राणी ते वंदो जिनराय,जिम सुख संपत्ति थाय रे-प्रा० ॥१॥ ए आंकणी ॥सुर नर रचियां तीरथ बहुलां, शत्रुजय गिरनार; अष्टापद अर्बुद गिरि माहि, समेत शीखरे सार रे-प्रा० ॥२॥ नागद्रह जीराओलि पास, कर है. मांगरोल घृत कल्लोलें दीव घोघे, कलिकुंड पंचासरे ठोर रे-प्रा०॥३॥ संखेश्वरोने थंभण पास, सेंरीसो वरकांणो सेस! तीफल वृद्धि गोडी पास, पाल्हण विहार जाणो रे-प्रा० ॥ ४॥ अंतरीक अंजारो पास, लोढण कल्लारो दादो; विजय चिंतामणी सोम चिंतामणी, भजीएं तजी उन्माद रे-प्रा०॥५॥ उंबरवाडी सूरजमंडण, सहस फणो जिन पास; भिड भंजनने कायर हेडो, पूरे अमीझरो आश रे-प्रा०॥६॥ ॥३७॥ बंभणवाडी वीर साचो रे नंदी पुरने नाणे; जीवीत स्वामी जपीएं ए धामी, वसंत पूरे लोढाणे रेंप्रा०॥७॥राणकपूर नाडुलाइ माहें, उदयपूरें अधिकरां; तारंगे श्री अजित जिणेसर, टालें भवनां HINSAA%%A4%AE%% For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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