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| मोझार - सु० ॥ ८३ ॥ पढे गणेजे सांभले एमा०, तसघर नवनिधि थाय - सु०; ऋद्धि वृद्धि सुख संपदाए- मा०, पामे पुण्य पसाय सु० ॥ ८४ ॥ कलश - हम शासय जिनवर सयल सुखकर संधुण्यों त्रिभुवन धणि, भवमोह वारण सुखकारण वंछित पूरण सुरमणी; तपगच्छ नायक सुखदायक विजय प्रभ सूरि दिनमणी, कवि देव विमल विनय माणिक विमल सुख संपत् घणी ॥ ८५ ॥ ' इति श्रीशाश्वत जिनवर स्तवनं संपूर्णम्”
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" अथ श्री निगोद स्तवनम् ”
ढाल - पहेली ॥ क्रीडा करी घेर आवीयो ॥ ए देशी ॥ वर्द्धमान जिन विनवुं, साहिब साहि स धीरो जी; तुम दर्शण विण हुं भन्यो, चिहुं गतिमां वड वीरो जी ॥ १ ॥ प्रभुं नरक तणां दुःख दोहिला ॥ ए आंकणी ॥ में सह्या काल अनंतो जी; शोर कियां नवि कोइ सुर्णे, एकविना भगवंतो जी - प्रभुं० ॥ २ ॥ पाप करीनें प्राणीओ, पोहत्यां नरक मोझारो जी; कठिन कुभाषा सांभली, नयनाश्रवण दुःखकारो जी - प्र० ॥ ३ ॥ शीतल योनीय उपजें, रहवें तपतें ठामो जी; जानुं
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