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Achan Ka Beramendi
शांतिना- प्रमाण रूधिरना, किच कह्यां बहु तामा जी-प्र०॥४॥ तव मन मांहें चिंतवें, जाइये किणहि दिशे पंच क. थना.
नासो जी; परवश पडियो प्राणियो, करतो कोडि विषासो जी-प्र०॥५॥ चंद्र न तिहां सूरिज नहीं, ॥३२॥
|घोर घंपट अंधारो जी, स्थानक अति असुहांमणां, फरस जिहां जिस्यो पूर धारो जी-प्र०॥ ६॥.... नवो नगरमां उपजें, जाणे असुर ते वारोजी; कोपकरी आवे तिहां, हाथ धरी हथिआरोजी ॥०॥७॥
करिय कतरनी देहनां, करतां खंडोखंड जी; रीव अतीव करे बहुं, पामें दुःख प्रचंडो जी-प्र०॥८॥ KI ढाल-बीजी-वैरागी थयो-ए देशी॥भांजे काया भांजतो रे,मारे फिचा माहि; उधे माथे अग्नीएं
दहेंए; उंचा बांधे पायो रे; जिनजी सांभलोजी, कडुआ कर्म विपाकोरे; जि ॥१॥ए आंकणी॥एवैतरणी| तटणी तणां, जलमें नांखे पास; करिये कुहाडे तरु पररें, छेदें अधिक उल्लासो रे; जि०॥२॥ उंचा जोयण पांचशे रें, उछाले आकाशे रे; श्वानरूप करडे तिहां रे, मृगजिम पाडें पास रे; जि०॥३॥ पन्नरे
॥३२॥ भेदे सुर मिली रे, करवत दीयेंरे कपाल रे; आरोपें शुली शरिरे, भांजें जिमतरु डालो रेजि०॥॥ बोलें ताता तेलमां, तिल करि काढ़ें ताम; वली भोंभरमां खेपवें रे, विरुआ तास विरामोरे; जि०
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