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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobatirth.org Achan Ka Beramendi शांतिना- प्रमाण रूधिरना, किच कह्यां बहु तामा जी-प्र०॥४॥ तव मन मांहें चिंतवें, जाइये किणहि दिशे पंच क. थना. नासो जी; परवश पडियो प्राणियो, करतो कोडि विषासो जी-प्र०॥५॥ चंद्र न तिहां सूरिज नहीं, ॥३२॥ |घोर घंपट अंधारो जी, स्थानक अति असुहांमणां, फरस जिहां जिस्यो पूर धारो जी-प्र०॥ ६॥.... नवो नगरमां उपजें, जाणे असुर ते वारोजी; कोपकरी आवे तिहां, हाथ धरी हथिआरोजी ॥०॥७॥ करिय कतरनी देहनां, करतां खंडोखंड जी; रीव अतीव करे बहुं, पामें दुःख प्रचंडो जी-प्र०॥८॥ KI ढाल-बीजी-वैरागी थयो-ए देशी॥भांजे काया भांजतो रे,मारे फिचा माहि; उधे माथे अग्नीएं दहेंए; उंचा बांधे पायो रे; जिनजी सांभलोजी, कडुआ कर्म विपाकोरे; जि ॥१॥ए आंकणी॥एवैतरणी| तटणी तणां, जलमें नांखे पास; करिये कुहाडे तरु पररें, छेदें अधिक उल्लासो रे; जि०॥२॥ उंचा जोयण पांचशे रें, उछाले आकाशे रे; श्वानरूप करडे तिहां रे, मृगजिम पाडें पास रे; जि०॥३॥ पन्नरे ॥३२॥ भेदे सुर मिली रे, करवत दीयेंरे कपाल रे; आरोपें शुली शरिरे, भांजें जिमतरु डालो रेजि०॥॥ बोलें ताता तेलमां, तिल करि काढ़ें ताम; वली भोंभरमां खेपवें रे, विरुआ तास विरामोरे; जि० ॐॐॐॐ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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