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Achan Ka Beramendi
पंच
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स्तवन
॥३१॥
शांतिना-बिंब नमो, बेंतालीश कोडी वलि जाण-ललना; अट्ठावन्न लाख सहस छत्रीश, अॅसी अधिक जिनवाणिथना.
ललना० उर्द्ध० ॥ ७६ ॥
ढाल-॥७॥भरत नृप भावश्युं ए॥तथा आवो जमाइ प्राहुणा ।ए देशी।मनुष्य क्षेत्र जिन जाणिएं, मालंतडी, शत्रुजय गिरनार, सुण सुंदरी; सम्मेत शिखर अष्टापदें ए-मा०, अर्बुद देव जुहार-सुण सुंदरी॥७७॥श्रीशंखेश्वर पास जी ए-मा०, जीरावलो जगजांण-सु०; अंतरीक्ष अवनी तले ए-मा०, थंभण पास वखाण-सु०॥७८॥ कलिकुंड कूकडे सरेए-मा०,श्रीकर हाटक देव-सु, मक्षी मालव जाणीएए-मा० सुरनर सारे सेव-सु०॥७९॥राणकपुर रलिआमणो ए-मा०,जिहांछे धरण विहार-सु०; बंभणवाड प्रमुख भलाए-मा०, भविजननें हितकार-सु०॥ ८॥गोडी मंडण जागतोए-मा०, वंदो महरी पास-सुरु श्रीअजावरो अमीझरोए-मा०,चिंतामणि लिल विलास-सु०॥८॥इम त्रिभुवनमा तीरथ भलाए-मा०,असंख्यात अनंत-सुतिहां जिन पडिमा वंदीएं ए-मा०,जांणी लाभ अनंत-सु० ॥८॥ संवत सत्तर चउदोत्तरे-मा०, कार्तीक शुदि गुरुवार-सु० दशमी दिनमें गाइया ए-मा०, समीनयर
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