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________________ SM Mahavam A kende www.kobathrtm.org Acharya Sh Kailas Gyanmandi RECOR- 54- 5 ललना; उर्द्ध०॥६७॥ आरण अच्युत त्रणसें, देहरांश्री जिनराय-ललना० चोपन सहस जिनेसरूं, वंदे सुरपति राय-ललना० उर्द्ध०॥६॥ ग्रैवेयके पहिले त्रिके, देहरां एकसो इग्यार-ललना; तेर सहस त्रणसें वली,वीश अधिक जुहार-ललना उर्द्ध०॥६९॥ मध्यम ग्रैवेयकें त्रिकें,देहरां एकसो सात-ललना, बार सहस बिंब अडसय च्यालीश,वंदो जिन सुप्रभात-ललना० उर्द्ध० ॥७०॥ उपला ग्रैवेयकत्रिके, देहरांसो सुखकार-ललना० बार सहस बिंब तिहां कह्यां,दीठे शिवसुख सार-ललला उर्द्ध०॥७१॥पंच विमान अन्नुत्तरें,देहरां पंच प्रधान ललना०; छसें बिंब तिहां भलां,भविय धरो नित्य ध्यान-ललना० उर्द्ध० ॥७२॥ उर्द्ध लोक देवल सवे,लाख चौराशी वखांण-ललना; सहस सत्ताणुं उपरें,त्रेवीश अधिक वली जाणललना० उद्धृ०॥७३॥ एकसो कोंडी बावन्न कोडी, चोराणुं लाख सहस चुम्माल-ललना० सातसें साठि अधिक सही, भविय नमो नित्य भाल-ललना उर्द्ध०॥ ७४ ॥ इम त्रिभुवन मांहि सवे. आठकोडि सत्तावन्न लाख-ललना बसें अॅसी आगल्यां, देहरांश्री जिन साख-ललना उर्द्ध०॥७॥पनरसें कोडि 5 शॉ.६ 07 For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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