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________________ नाग कुमारे जांण, लाख चोरासीअ०, देहरां अतिहिं दीपताएं;॥४७॥ प्रतिमा एकसो कोडी, तिमी एकावन्न; वीश लाख उपरि कहीएं ए॥४८॥ बहोत्तेर लाख प्रासाद, सुवर्ण कुमारमां; एकसो कोडि जिन वंदीएं ए॥ ४९ ॥ ओगणत्रीश वली कोडि, साठि लाख उपरें; भावधरी नित्य वंदीएं ए॥ ५० ॥ विद्युत अग्निकुमार, द्वीपकुमार तिम; उदधि कुमार वखाणीएं ए॥५१॥ दिगूकुमार वली सार, स्तनित कुमारमा; ए छ स्थानक जिन कहेंए ॥ ५२ ॥ बहोत्तेर बहोत्तेर लाख, एक एक स्थानकें; जिन देहरां नित्य वंदीएं ए॥ ५३॥ एकसो कोडि सार, छत्रीस कोडि उपरिं; एंसी लाख, जिन वंदीएं ए ॥ ५४॥ छन्@ लाख प्रासाद, वायु कुमारमा; एकसो कोडि वखाणिएं ए॥ ५५ ॥ उपरि बहोतेर कोडि, अॅसी लाख तिम; जिन पडिमा नित्य वंदीएं ए॥ ५६ ॥ सात कोडि बहोतेर 81 लाख, भुवनपतिमां; जिन देहरां जिनजीकह्यांए ॥५७॥ तेरसें नव्यासी कोडी, साठि लाख उपरि माणिक जिन नित्य वंदीएं ए॥ ५८॥ ढाल-॥ ६॥ देश मनोहर मालवो ॥ ए देशी ॥ उर्द्ध लोक सुधर्म सुंणो, देहरां बत्रीश लाख %AKBARSA For Fate And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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