________________
SM Mahavam
A
kende
www.kobatirth.org
Acharya Sh Kailasagar
Gyanmandi
पंचक०
जोनिता थना.
स्तवन
॥२९॥
इग्यारसे सिंत्तरि जांण; रे; एक लाख चालीश सहस बिंब, च्यारसें इम मन आण रे॥शा० ॥३७॥ कांचनगिरि जिनवर कह्यां, सहस एक प्रासाद रे; एक लाख वीस सहस उपरें, वंदिलहें सुप्रसाद रे;॥शा०॥३८॥ सित्तरि देहरां महानदी, बिंब सय चोराशी रे; हृदे अॅसी छे देहरां, छन्नुसे बिंब राशी रे;॥ शा०॥ ३९ ॥ कुंडे त्रणसे एंसी वली, प्रासाद वीशाल रे; पणयाल सहस उपरिं, छसें बिंब विशाल रे०, ॥शा०॥४०॥ वृत्त वैताव्ये वीशछे, प्रासाद इयुं श्रृंग रेचोवीससें जिन वंदतां, लहीएं सुख संग रे;॥शा०॥४१॥ वीश प्रासाद यमक गिरि, चोवीससे जिन वंदो रे; ध्यान धरी मनमां सदा, भवभय दूरित निकंदो रे ॥शा० ॥ ४२ ॥बत्रीस सय उगुण सट्टीवली, प्रासाद तिर्यग् लोकेंरे; त्रण लाख सहस एकागुंअ, त्रणसय वीशछे थोके रें॥ शा०॥४३॥ | ढाल-॥५॥ भरत क्षेत्र मोझार रे ॥ ए देशी ॥ व्यंतर ज्योतिषी मांहि, असंख्यात जिनघर; जिनपडिमां तिम जाणीएं ए॥४४॥ हवें पातालह लोक, असुर कुमारमां; चोसठि लाख जिन देहरां ए॥४५॥ जिनवर एकसो कोडी, पन्नर कोडी उपरें; एकवीश लाख तिम वंदीएं ए॥४६॥
सरकार
॥२९॥
For Pale And Personal use only