SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥ २२ ॥ 444444 www.kobarth.org. संघ दुप्पसह तणो जी, आण न खंडे तेह, सोभागी छहे० ॥ ए आंकणी ॥ वीस वर्षनुं आउखुं जी, बार वरस घर सार; च्यार वरस मुनिवर पणुं जी, वरस च्यार गच्छ सार, सोभा० ॥ ५९ ॥ फलगु सिरि जस साधवी जी, नागिल श्रावक जोय; सत्यश्री नामे श्रावीका जी, संघ चतुर्विध होय, सोभा० ॥ ६० ॥ सुविहित संघ छहलो सही जी, अल्प आउखूंरे त्यांहि; संघ सूरि श्रुत केवली जी, जाए पोहरज मांहि, सोभा० ॥ ६१॥ विमल वाहन नरपति जी, सुधर्म मंत्रि रे जेह; न्याय निति अग्नि जश्ये जी; वलि मध्यानें तेह सोभा०॥६२॥ दूहा - जैन धर्म एता लगें, पछें नाहीं पुण्य दान; वाय मेघ भुंडा हश्यें, सुणि गौतम तस मान ॥ ६३ ॥ ढाल — ॥ १० ॥ मगध देशको राजा राजेसर ए देशी ॥ मान प्रकाशे मेघज केरो, पहेलो ते जलधार; बीजो अभि तणो तिहां होसें, त्रीजो ते विष धार हो गौतम सुण तुं मधुरी, वाणी ॥ ए आंकणी ॥ ६४ ॥ चोथो आंबिलनो घन वरसें, विजलिनो वरसाद ; एके को मेघज तिहां वरसें, वासर सातज सात हो गौ० ॥ ६५ ॥ बहोतेर बिल वैताढ्यज केरां, छे वली शाश्वत त्यांहीं; नर नारी पंखी हय वारण, ते रहशे तेमांहि हो, गौ० ॥ ६६ ॥ आगल छट्टो आरो होशे, दुःसम दुसमा नामें; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Pitvate And Personal Use Only पंच क० स्तवन. ॥ २२ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy