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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. दूहा — गौतम वीर पछी जशे वर्ष सयां ओगणीश; पंच मासने उपरी, भाख्यां बारज दीश ॥ ५१ ॥ ढाल — ॥ ८ ॥ रामभणे हरी उठीएं ए ॥ ए देशी ॥ ताम कलंकि रे उपजें, कुल चांडाल असार रे; मात यशोदा रे बांभणी, होशे तिहां अवतार रे, दुर्गति गामि रे तेसही ॥ ए आंकणी ॥ ५२ ॥ चैत्र शुदि रे आठमने दिनें, विष्टी जनम ते होइरे; देह वरण तस उजलो, पीलां लोचन दोय रे, दुर्ग० ॥ ५३ ॥ रुद्र कलंकी चतुर्मुखी, ए होशे त्रण नामरे; बासी वर्षनुं आउखु, पाटली पुर जस गाम रे दुर्ग० ॥ ५४ ॥ छट्टो भागज भीखनो, लेश्ये कलंकी राय रे; षट् दरिशन मानेनहीं, दंड कुदंड ते थाय रे दु० ॥ ५५ ॥ इहां पछी आवशे, धरशे विप्रनुं रुप रे; वेगें हणशे रे रायने, लेशे नरकनुं कूपरे दु० ॥ ५६ ॥ दूहा - तेहनो सुत सुंदर हशे, दत्त भूप अभिराम; शत्रुंजय उद्धार करावशे, राखशे जगमां नाम ॥५७॥ ढाल ॥ ९ ॥ प्रणमी तुम सीमधरुं जी ॥ ए देशी ॥ आगले आरे पांचमें जी; दुप्पसह मुनिवर होय; सुर गतिमांथी आवशे जी, आगल सुरपति सोय, सोभागी छहेलो मुनिवर एह, छेहलो For Pitvate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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