________________
ShriMahavirain AartmenaKendra
www.kobatirth.org
Achan Kailas
Gyamandi
क०
स्तवन.
शांतिना
लगें होय हो गौ०॥ ४३ ॥ वीरथी वर्ष छसें नव जाते, ताम दिगम्बर थाय; सर्व विसंवादी ए थना.
निन्हव, आठमो ते कहेवाय हो गौ०॥४४॥ वरस छसें ने सोल जाअंतां, पूरव साडा नव छेदः ॥२१॥
दुर्बलिका पुत्रज लगी होवे, आगलि सोय निषेध हो गौ०॥४५॥
हा-नवसे त्राणुं वर्ष गए, पूस्तका रूढज होय; चोथे पजुसण आणस्य, कालिका चार्य सोय ॥ ४६॥ ___ ढाल ॥७॥ शालिभद्र मोह्योरे शिव रमणी रसेंरे ॥ ए देशी ॥ वीरथी वरस हजार गयां पछीरे, | मापूरव होय तव छेद; तेर सयां रे वरसे मत हशेरे, बोले नव नवा भेदो रे ॥४७॥ इंद्रभूति मोह्यो
रे वीर वचन रसेंरे, ए आंकणी ॥ दिन दिन काल पडतो सहीथशे रे, पुण्यवंता नर किहांडः नीचकुले नरपति बहु थशे रे, पाप तणा मति प्रांहि रे, इं०॥४८॥ वासव वैराग ने वन थोडां थशेरे, नहीं मले मन्त्रे मन्त्रो रे; सु पुरुष सत्य सह सगपण छांडश्य रे, वाहलं होश्य धन्नो रे इं०॥४९॥ कलीयुग मांहिं रे मुनी लोभी हशे, विरला कही व्यवहार; धर्म त्यजशें क्षत्री नर वली रे, ब्रह्म धरे हथीयारो रे, इं०॥५०॥
For Pale And Personal use only