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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिना थना. ॥ १४ ॥ %%%%%% सह% *%% 49% %या www.kobarth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांति तुष्टि पुष्टिसदा, रू० तस घर लछी विशाल बू० ॥ २१ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ राग धन्या श्री ॥ आज माहरे त्रिभुवन साहेब तुठो ॥ ए देशी ॥ पंच कल्याणक श्री शांतिनां, गुरु कृपायें गायारे ॥ एहकल्याणक त्रिविधें थूणतां, अनुभव रसमें पायारे ॥ १ ॥ त्रिभुवन नायक लायक तुठो, मोह माह| मल्ल रुठोरे ॥ त्रि० ॥ ए आंकणी ० ॥ दुरगतित्यागी पाप वीदारी, पावो शीव पटराणिरे || जीनगुण वाणि अमीय समाणि, लहीयां अनुभव नाणीरे त्रि० ॥ २ ॥ श्रीतीर्थपती भवियण नीत्यध्यावे, शांति जिणंदने गावोरे ॥ थाल भरिभरि शांतिविधावो, परममहोदय पावोरे त्रिभु० ॥ ३ ॥ आगम महोत्सव मांहेंरचना, स्तवना करी भलिभातेंरे; श्रावक श्राविका टोले मलीनें, निसुणे वाणि प्रभातेंरे त्रिभु० ॥४॥ संवतअढार छहोत्तेरा वरषै, चैत्रवदी रवि वारेंरे ॥ एकादशी दिवसें संधुणीयो, भवियण नें हीतकार रे त्रिभु० ॥ ५ ॥ तपगच्छ दीनकर तेजप्रतापी, सकल मुनि शिरताजेंरे || श्री विजय सुरेंद्रसूरी गुणगाजे, विजयानंद गच्छछाजेरे त्रिभु० ॥ ६ ॥ वीरपमुहा बिंब स्थापनाकीधी, अढी लाख उदाररे ॥ दानसूरीश्वर भविहीत करूं, तस परंपर साररे ॥ त्रिभु० ॥ ७ ॥ वेद वीचक्षण श्रुतधरवाणी, श्री जितविजय For Pitvate And Personal Use Only पंच क० स्तवन ॥ १४ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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