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शांतिना
थना.
॥ १४ ॥
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शांति तुष्टि पुष्टिसदा, रू० तस घर लछी विशाल बू० ॥ २१ ॥ ढाल ॥ ५ ॥ राग धन्या श्री ॥ आज माहरे त्रिभुवन साहेब तुठो ॥ ए देशी ॥ पंच कल्याणक श्री शांतिनां, गुरु कृपायें गायारे ॥ एहकल्याणक त्रिविधें थूणतां, अनुभव रसमें पायारे ॥ १ ॥ त्रिभुवन नायक लायक तुठो, मोह माह| मल्ल रुठोरे ॥ त्रि० ॥ ए आंकणी ० ॥ दुरगतित्यागी पाप वीदारी, पावो शीव पटराणिरे || जीनगुण वाणि अमीय समाणि, लहीयां अनुभव नाणीरे त्रि० ॥ २ ॥ श्रीतीर्थपती भवियण नीत्यध्यावे, शांति जिणंदने गावोरे ॥ थाल भरिभरि शांतिविधावो, परममहोदय पावोरे त्रिभु० ॥ ३ ॥ आगम महोत्सव मांहेंरचना, स्तवना करी भलिभातेंरे; श्रावक श्राविका टोले मलीनें, निसुणे वाणि प्रभातेंरे त्रिभु० ॥४॥ संवतअढार छहोत्तेरा वरषै, चैत्रवदी रवि वारेंरे ॥ एकादशी दिवसें संधुणीयो, भवियण नें हीतकार रे त्रिभु० ॥ ५ ॥ तपगच्छ दीनकर तेजप्रतापी, सकल मुनि शिरताजेंरे || श्री विजय सुरेंद्रसूरी गुणगाजे, विजयानंद गच्छछाजेरे त्रिभु० ॥ ६ ॥ वीरपमुहा बिंब स्थापनाकीधी, अढी लाख उदाररे ॥ दानसूरीश्वर भविहीत करूं, तस परंपर साररे ॥ त्रिभु० ॥ ७ ॥ वेद वीचक्षण श्रुतधरवाणी, श्री जितविजय
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पंच क० स्तवन
॥ १४ ॥