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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पहेले त्रिके ग्रैवेयकें भला, रू० विमान एकसो इग्यार बू० ॥ १२ ॥ तेर हजार वलीत्रणसें, रू० उपरें विसजिणंद बू० ॥ बीजे श्रीकें एकसोसात, रू० बीमान छे सुखकंद बू० ॥ १३ ॥ द्वादश सहस अडसय, रू० चालिस बिंब जुहार बू० ॥ एकसो वीमान त्रीजे त्रीकें, रू० जिनबिंब बारहजार बू० ॥ १४ ॥ विजयाय विजयंति जयंति, रू० अपराजीत चोथुं नाम बू० ॥ सरवारथ विमान पण, रू० प्रणमो छसय स्वाम बू० ॥ १५ ॥ एकसो कोडि बावन्न कोडि, रू० चोराणुं लक्ष हजार बू० ॥ चूंआलिश शत सयसठ, रू० उर्द्ध लोके बिंबधार बू० ॥ १६ ॥ जिनबिंब जिन दाढाहरी, रू० भावभावे मनोहार बू० ॥ अगर कपूर धूपउखेवे, रू० पूजे विविध प्रकार बू० ॥ १७ ॥ धनुष चालीसनी देहडी रू० कंचन वरणी काय बू० ॥ लंछन मृग जस छाजतो, रू० गाजतो आणंद पाय बू० ॥ १८ ॥ सेवतो यक्ष गरुड भलो, रू० नितनित संघ समुदाय बू० ॥ देवी निर्वाणी विघनवारे, रू० अहनीस जीनगुण गाय बू० ॥ १९ ॥ मोक्ष कल्याणक पांचमो, रू० ध्यावो शांति जिणंद बू० ॥ शुभलेश्या श्रीजिनथूणतां, कृ० पावो परमानंद बू० ॥ २० ॥ जे नर नारि एथुणसें, रू० पामसे मंगल माल बू० For Pitvate And Personal Use Only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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