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________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra शांतिनाथना. ॥ १३ ॥ x-xxxx www.kobarth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चालीश पचाशकोडि रू० ॥ नमोबिंब टाली प्रमाद बू० ॥ ३ ॥ सनत कुमार विमान शुची, रू० ॥ द्वादश लक्ष प्रमाण बू० ॥ सठलक्ष एकवीस कोडि, रू० जिन बिंब नमो सयाण बू० ॥ ४ ॥ चोथे | माहेंद्रे वीमान कह्यां रू० ॥ अडलक्ष छे विचार बू० ॥ चालीश लक्ष चउदें कोडि, रू० प्रणमो बिंब उदार बू० ॥ ५ ॥ चउलक्ष ब्रह्म पांचमें, रू० विमान सुंदर रसाल बू० ॥ सप्तकोडि लक्ष जीनवीश, रू० पूजे श्री बिंब विशाल बू० ॥ ६ ॥ पंचास सहस्र छठें कह्यां, रू० विमान लांतिक सूर बू० ॥ लक्षनेवुं बिंबरुअडां, रु० नमो आणंद भरपुर बू० ॥ ७ ॥ देवलोय शुक्र सातमें रू० ॥ सहस चालीस वीमान बू० ॥ जिनबिंब लक्ष बावत्तरी, रू० ॥ हरी पूजे गुणजाण बू० ॥ ८ ॥ सहसार देव आठमो भलो, रू० सहस छ विमान जोय बूं० ॥ दीगलक्ष एंसी सहसबिंब, रू० जिननमी दुर्मति खोय बू० ॥ ९ ॥ आनत प्राणत देवता, रू० दुगदुग सय प्रासाद बू० ॥ छत्तीस छत्तीस सहसछे, रू० टाली नमो उन्माद बू० ॥ १० ॥ एकादश द्वादश शुची, रू० आरण अच्यूत नाम बू० ॥ दुग दोढसो विमान भलां, रू० सहस सत्ताविस स्वाम बू० ॥ ११ ॥ बिजे एम परमांणछें, रू० श्रीजिनबिंब जुहार बू० ॥ For Pitvale And Personal Use Only पंच क० स्तवन. ॥ १३ ॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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