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Acharya Sh Kailasageri Gyanmandi
अर्थ
संयमश्रेणी स्तवनम्
श्रेणिरुप भाव फुले करीने निष्पाव के० पाप रहित पद के चरण कमलने पुजु के० अर्चा करुं छं ॥२॥ गाथा-वाचक जशविजये रच्योजी, संक्षेपे सझाय; विस्तरि जिन गुण गावतांजी,
सहित जीव्हा पावन थाय० गुणो दधि० मेरु०॥३॥ बारकषाय क्षय उपशमेंजी, सर्व विरति || गुण ठाण; तेहना आदिम ठाणमांजी, पर्यवना परिमाण० गुणो दधि० मेरु०॥४॥ |
भावार्थः-न्यायवादि शिरोरत्न महोपाध्याय श्री यशोविजय गणिए तिक्ष्णबुद्धिगम्य संयम ||२|| श्रेणिनो सझाय ते पण विस्तार रुचिनां अर्थे अमे संक्षेप रचेलछे ॥ विस्तारे संयम स्थान गर्भित जिनेश्वरना गुण गाता थका जीह्वा तथा जन्म पवित्र थाय ॥ उत्तम जीवने ए मनोरथज होय ॥ यदुक्तं-चिरसंचियपावपणासणीए, भवसय सहस्समहणीप; चउवीसजिणविणिग्गयकहाई, वोलंतु मे दीअहा; एटले मंगलीक अभिधेयादिक कयां ॥३॥
हवे आदिम बार कषायने क्षयोपशमें एटले जे उदय आव्या दलीकने क्षय करे अने | उदय नथी आव्या तेहने उपशमावे ॥जे प्रदेशे उदय आव्याने वेदे एहवी अवस्थाए वर्त्ततां |
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