SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendis श्रीज्ञानपंचमी www.kobatirth.org. जिननेमीसरजीरे ॥ एटेक ॥ ढाल पूर्वली - पंचमी तप महीमा कहुं रे, सांभलो सुगुण सुजाण; एक दिन नेमी समोसख्या रे, द्वारिका नयरी उद्यान; त्रुटक- द्वारिका नयरी उद्याने यावे, कृष्ण प्रमुख यादव मन भावे; वांदी नेमने पुछे प्रश्न, ज्ञान पंचमी तणो श्री कृष्ण ॥ जिननेमी ॥२॥ ढाल पूर्वलीनेम कहे हरीनें तदारे, ज्ञान तणो अधीकार; क्रीया नें निर्मल करें रे, मुक्ति तणो दातार; त्रुटकमुक्ति तणो दातार ग्रंथे, पंचमा अंगनें माहा निसिथे; ज्ञानी श्वासोश्वासे जेह, कर्म निकाचित्त | त्रोडे तेह ॥ जिननेमी ॥ ३ ॥ ढाल पूर्वली - क्रोड वर्ष नारकी तणा रे, कर्म छूटे तत्काल; ज्ञानविना नर जांणजोरे, पशु सम अंधनें बाल; त्रुटक- पशुसम अंधनें बाल ते दाख्यो, ज्ञान ग्रही जेणें समकित चाख्यो; पयसाकर नो जेम बनाव, ज्ञानक्रीयानो तेम स्वभाव ॥ जिननेमी ॥ ४ ॥ ढाल पूर्वली-रुपी अरुपी लोकमां रे, नीवें नें व्यवहार; द्रव्य भाव क्रिया तणोरे जाणें सर्व विचार ॥ त्रुटक-जाणे सर्व विचारते नाणी, लोक अलोक निगोद वखाणी; नरक तणा छूटवा पास, आराधो नाण पंचमि सुविलास ॥ जिननेमी ॥ ५ ॥ ढाल पूर्वली - पंचमी तप साधन थकिरे, पामें पंचम For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवनम्
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy