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________________ SM Mahavam A kende Acham Ka B andit शांतिनाथनां. पंच क० स्तवन. ॥१२॥ टाले कर्मनां पासरे। मो०॥३ इंद्र रतनमय शुभकरे, तीर्थंकर गण धारारे॥ मुनितीन शूभ रची करी, नंदीश्वर जाए प्यारारे । मो०॥४॥ जंबु द्वीपथी आठमो, त्रीदश रमवानुं धामरे ॥ एकसो तेसठ कोडि चौरासी, लक्ष जोयण अभिरामरे ॥ मो०॥ ५॥ मान विखंभ वलयांकित, शाश्वतां चैत्य जुहारोरे ॥ आनंद मंदीर सुखकरूं, तसवंदीत पाप नीवारोरे ॥ मो० ॥६॥ चिहुं दिशि चिहुं अंजनगिरी, उंचा चोरासी हजारोरे ॥ लांबां वीस्तार दशसहस्स छे, सहसभुमी मांहे धारोरे ॥मो०॥ ॥७॥ नंदोत्तरा नंदा आनंदा, नंदी वर्द्धनी वाविनामरे ॥ दश जोयण उंडीकही, चउ वनछे अभिरामरे ॥ मो०॥ ८ ॥ थंभ तोरण धारादिकसवी, दधीमुख गीरी मांहेदीसेरे ॥ तेह उपरें जीन मंदीरां, शोभीत सुरनर दीसेरे ॥ मो०॥९॥ अंजन गिरी परिमाण छे, उंचा लांबा विस्तारोरे ॥ |जिन मंदीर आठ उपरें, झल्लरी काराधारोरे । मो०॥१०॥चौ बारा प्रासादछे, अंजन गिरि शिरजांणोरे ॥ तेरतेर प्रसाद चीहंदीसे, बावन्न जिन घरमांनीरे ॥ मो०॥ ११ ॥ ऋषभ चंद्रानन शाश्वतां, वारीषेण वर्द्धमानोरे ॥ एकसो चोविश पडिमावंदो, प्रभा रयण समानोरे ॥ मो०॥ १२॥ ASINSRX% ॥१२॥ ॥१२ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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