SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ShriMahavirain AartmenaKendra www.kobathrtm.org Acharya Sh Kailasageri Gyanmandi अर्बुदाच- लउत्पत्ति %252-%AR लगि चंद ह तारा, रहवराव्यो जग नामजी ॥ ५॥ अचलेश्वर तिर्थ शुभ देहरो, मंदागिणि चैत्यपदेखोजी; शुभ लौकिक तिर्थ छे अनोपम, देखत जन्म शुभ लेखोजी ॥६॥ कुमर विहार जून तिर्थए, रिपाटी जन सघलो जन जाणेजी; पीतलमे तिहां शोभे, सुरनर चित्तमा आणेजी ॥७॥प्रतिमा गाली स्तवनम् श्री जिन केरी, सांढीओ सुंदर कीधोजी; अचलेश्वर तिहां लिंग स्थापना, अपयश तिलक सिर लीधोजी ॥ ८॥ पाल्हो पापी पुण्ये हीणो, श्री जिन प्रतिमा त्रिण गाली जी; कुमती पापीने सुं कहियें, यश कीर्ति शुभ बालीजी ॥ ९॥ तत्क्षिण विणस्यो अंग तेहनो, गलित कोढ अंग व्यापेजी; देव स्वप्न दीधों पाल्हाने, पालविहार जिन स्थापेजी ॥१०॥ पाल्हणपुर नगरमां सुंदर, पाल्ह विहार जयकारीजी; उद्धार राय लखाने वचने, रायविहार प्रीति सारीजी ॥ ११ ॥ खंभाति नगरथी आणी सुंदर, मूर्ति श्री जिन शांतिजी; गढ माहिं पूनुं ओरडीये, कुंथुनाथ भगवंतजी : ॥ १२ ॥ साह शीरोमणि खेता संघवी, स्थापे प्रतिमा सारजी; श्री जिन स्थापी पूजी वांदी, सफल करि अवतारजी ॥ १३॥ लखपति राजाने आदेखें, मांडवगढनो वासीजी; सहसा सुलताणी चित्त 4 For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy