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अर्बुदाचलउत्पत्ति
॥१५३॥
एक छे तुज आसरो ए॥ तारे जो तुं तार ॥ जयो ॥ ५॥ सत्तर नवाणुमा रहि ए॥ पाल्हणपुर चैत्यपचोमास ॥ जयो ॥ श्रावण शुदि तिथि पंचमि ए ॥ हस्तारक दिन खास ॥ जयो ॥६॥ संघ रिपाटी तणा आग्रह थकी ए॥ कीधा ते दिन जोड ॥ जयो॥ कांति कहे जे सांभले ए॥ ते घर संपद स्तवनम् कोडि ॥ जयो ॥७॥
कलश-इम भुवनभूषण दलितदूषण दुरितशोषण जिनपति ॥ शिरताज जगजदुराय है। गातां पाइओ सुख संपत्ती ॥ श्री विजयप्रभगुरुचरणसेवक शिष्य प्रेमविजय तणो ॥ कहे कांति सुणतां भविक भणता पामिए मंगल घणो ॥१॥
"इति श्री सौभाग्यपंचमीमाहात्म्य गर्भित स्तवनम्" “अथ श्री अर्बुदाचल उत्पत्ति चैत्यपरिपाटी स्तवन"
॥१५३॥ दुहा–जिनवर चोवीसे नमी, सकल जीव सुखकार; हंसवाहिनी हर्खसो, वाणी मुज आधार
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