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________________ Acharya Sh Kegemar + 18 स्तवनम् सौभाग्य पंचमी + 4455++ पुर हुत्त ॥आजहो० हुआरे जुजुआ राज्ये ते ठव्याजी ॥७॥ दीक्षा ल्ये सुग्रीव ॥ स्थावर सुक्ष्म जीव ॥ आजहो० पाले रे संभालें व्रत चोखे मनेजी॥८॥ तप तपतां सुहजाण ॥ उपनुं केवल नाण ॥ आजहो० सोहेरे पडीबोहे भवीयण वीश्वनांजी ॥९॥ लाख वर्षनुं आय ॥ पाली ते रुषी राय ॥ आजहो० कांतिरें बलीहारी शीवनारी वस्योजी ॥१०॥ | ढाल–९-नवमी॥जयो जिन वीरजी ए ॥ ए देशी ॥ पंचमी तिथि तणो भाषीयो ए॥इम महीमा | सुवीवेक ॥ जयो जिन नेमजी ए॥ सींचि सद्दहणां रसें ए॥ तास्या भविक अनेक ॥ जयो जिन नेमजी ए॥ए आंकणी ॥१॥ जिन वाणी रस भावीया ए ॥ पाम्यां केइ प्रतिबोध ॥ जयो॥ केटले ए तप उच्चरी ए ॥ कीधो आतम सोध ॥जयो॥२॥ आणा ए आराधता ए॥ लहीयें एहथी सौभाग ॥ जयो ॥ सौभाग्यपंचमी ते भणी ए॥ए कही सेवा लाग ॥ जयो ॥३॥ धन धन प्रभुजी नी देशना ए॥ जेणें सुणी ते पण धन्य ॥ जयो॥ दुषम काले कां अवता ए ॥ अम्हें पण सुणता वचन्न ॥ जयो ॥४॥ दोष घणां मुजमां भस्या ए॥ नही क्रिया व्यवहार ॥ जयो ॥ पण ॐ + ACHEC++ + + For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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