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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सौभाग्य पंचमी ॥१५२॥ www.kobatirth.org. भावें ॥ वांदी राय गयो निज धामें ॥ सुतनें पाटे ठावेरे ॥ आराधो हीत० ॥ १५ ॥ वर्ष सहस्स दस नृपपद पाली || व्रत ल्यें जिनमें चरणें । वर्ष सहस्स एक चारीत्र पाली || केवल कमला पर रे ॥ आराधो हीत० ॥ १६ ॥ नाण पंचमी तपथी इंणीपरें ॥ सीद्धा भवीक अपार ॥ कांतिविजय कहे सूणज्यों आगें ॥ गुणमंजरी अधीकाररे ॥ आराधो हीत० ॥ १७ ॥ ढाल – ८ - आठमीलाछलदे मात मल्हार ॥ ए देशी ॥ जंबुद्वीप मोझार ॥ रमणी विजय उदार ॥ आजहो० राजेरे तिहां छाजे नगरी विश्रुताजी ॥ १ ॥ अमरसिंह तिहां राय ॥ मोहटो जस भड वाय ॥ आजहो० राणीरे गुणखाणी अमरवती सतीजी ॥ २ ॥ गुणमंजरीनो जीव ॥ पाली आय अतीव ॥ आजहो० कुखैरे सुत भुर्खे तेहनें अवतस्योजी ॥ ३ ॥ जनम्यो समये बाल ॥ मन हरख्यो भूपाल | आजहो० नामरें तमामें सुग्रीव स्थापीयोजी ॥ ४ ॥ वीस वर्षनो जाम ॥ हुओ धीर उद्दाम || आजहो० जाणीरे माणीगर राज्य नृपे दीयुंजी ॥ ५ ॥ चारीत्र ल्यें नीसोक ॥ नृप साधें परलोक ॥ आजहो० कुमरें रे रसभरें बहु कन्या वरयोजी ॥ ६ ॥ सहस चौरासी पुत्र ॥ रुप जीस्या Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Pitvale And Personal Use Only स्तवनम् ॥१५२॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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