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________________ Shegame स्तवनम् ॐook ॐॐ सौभाग्य |पुर प्रमाद नदी तणें ॥ आगम तरु नाखें खिसायरे॥आगम०॥सुगुरु०॥१०॥पालटता परीणामथी पंचमी चिंते मन विकल्प एमरे ॥ श्रुत दुख कारण मुज थयुं॥भण्यां शुक ने पंजर जेमरे॥ भण्यांसुगुरु०॥ ॥ ११ ॥ मुर्खपणामां गुण घणा ॥ पंडीत जन दुखीया होयरे ॥ जुवो ए बंधव माहरो ॥ अभण्यो| रहे सुखमां सोयरे ॥ अभण्यो॥सुगुरु०॥१२॥ न भणुंभणावून आजथी।वीसारु पठीत पुराणरे ॥ जो थाउं बंधव समो॥ तो वांछयु होय प्रमाणरे ॥ तो वांछयुगासुगुरु०॥१३॥दीन दस दोय मौने रह्यो। आलोयां पाप न तेहरे ॥ काल करी रुद्रध्यानमां ॥ तुज पुत्र पणे थयो एहरे ॥ तुज०॥सुगुरु०॥१४॥ कोढ थयो कृत कर्मथी ॥ नही वीद्यानो पण लेसरे ॥ कीधा कर्म वीपाकथी ॥ संतापे आपे रेसरे ॥ संतापे०॥सुगुरु०॥१५॥सूरी सहोदर ते मरी ॥ थयो मानस सरनो हंसरे॥गती विचित्र ए कर्मनी हड दिसंभव नही जस अंसरे॥ हुइासुगुरु०॥१६॥सांभलतांगत भव कथा॥वरदत्तने सांभरी जातरे। मुर्छा दाचिते वल्ये कहे ॥ साचुंसवी ए जग भ्रातरे॥साचुं॥सुगुरु०॥१७॥ भूप कहें भगवन सूणो ॥ कीम जास्ये सुतनां रोगरे ॥ गुरु कहे तप साधन थकी। लहस्ये सुख कांति नीरोगरे॥लहस्ये॥सुगुरु०॥१८॥ शो. २८ For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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