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ShriMahavirain AamanaKende
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सौभाग्य पंचमी
जीरे० कात्ती सुदिनि एक ॥ करवी जिहां जीवीत लगें ॥जीरेजी ॥ ६॥ जीरे० आराधी तिथी स्तवनम् एह ॥ दीए सोहाग सोहामणा ॥ जीरेजी ॥ जीरे० रोग रहीत नव रुप ॥ जस धन धान्य दीयें। घj ॥ जीरेजी ॥७॥ जीरे शुत संतती परीवार ॥ खर्ग दियें आराधतां ॥ जीरेजी ॥ जीरे० सीधी बुद्धी पण नाण ॥ जीन पदवी दीयें साधतां ॥ जीरेजी ॥ ८॥ जीरे० इमनी सुणी जीन देव॥कहे नही सक्ति सुतातणी ॥ जीरेजी ॥ जीरे० करस्य वर्षनी एक॥वीस्तारी विधि कहो मुंणि॥ जीरेजी ॥९॥ जीरे वैसाख जेठ आषाढ ॥ मृगसीर माहें फागुणें ॥ जीरेजी ॥ जीरे० उच्चारीयें गुरु साख ॥ पंचमी शुभमुहुर्त दिणें ॥जीरेजी॥१०॥जीरे० गुरु कहें पुस्तक पाट॥थापी कुशुमें पुजीयें ।
जीरेजी ॥ जीरे०॥धुप उखेवो धान ॥ पंच वर्ण ढोइजीयें। जीरेजी ॥ ११॥ जीरे० पांच जाति पक्कवान ॥ पांच पांच फल मुकीयें ॥ जीरेजी ॥ जीरे० चोथ तणो पच्चखाण ॥ गुरु मुखथी नवी चुकीयें ॥ जीरेजी ॥ १२॥ जीरे०॥ देहरे देव जुहार ॥ गीतार्थ गुरु वांदीयें ॥ जीरेजी॥ जीरे०॥ पुजी पुस्तक भाव ॥ करे प्रभावना हसी हीयें ॥ जीरेजी॥१३॥जीरे० सक्तिनाण मंडाव ॥
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