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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kend दश मता धिकारे www.kobatirth.org. वास; गरु विना गति नही लाला, सुजस वचन विशाल ॥ जोज्यो भवि० ॥ प्राणीयो० ॥ १० ॥ ढाल – ५ – पांचमी ॥ वैरागिनी ॥ लोको भुलोमां ॥ ए देशी ॥ संवत पन्नर सीत्तेर समेरे, विजया मतिनीरे वात; लुका मांहीथी उपन्यारे, कलि युगमे कमजातोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ए आंकणी ॥ ॥ १ ॥ पुजा नीवारी जिनभणि, इर्या सुमतिनी राह; माला रूप मांने नहि, कलियुगे उपनी धाडरे ॥ लोको भूलोमां ॥ २ ॥ कहेतां अवगुण एहनारे, कोइ न आवे पार; जे अवले भामे पाड्यारे, ता रुठो कीरतारोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ३ ॥ नागोरि तप गच्छधीरे, पाय चंद उपन्न; कलयुगे कलंकी समोरे, शांन्तिदास नीपन्नोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ४ ॥ सागर जेहनी उपमारे, तेहना रे जलना खभावरे; पिधे जीम दुःखिया होयेरे, दुःख समुद्र नीवारोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ५ ॥ लोभि | लंपटी जे हुतारे, मुकी लाज निज आप शांन्तिदासने जेणे कर्योरे, बुडवा भवनो पायोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ६ ॥ तप गच्छ मांहि करीरे, नयवेमले नविरीत; नव मानव नव सारीखोरे, घिरनो ए अवनितोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ७ ॥ आप मतिलो उपन्योरे, अवली जेहनी वात; आगम लोपे For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षमान स्तवनम्
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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