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________________ C वर्धमान दश मता धिकारे स्तवनम् ॥१४०॥ HORSHAN पाडली पुरे कीम कहेरे लाला, मूर्ख मोटा ए मिथ ॥ जोज्यो भवी० ॥ प्राणीयो० ॥२॥ द्रव्य क्षेत्र काल |भावनारे लाला, आगमे प्रगट ए पाठ; भेद महानिसीथे घणारे लाला, दुष्ट निमीते पडयो काल॥ | जोज्यो भवी० ॥ प्राणीयो० ॥३॥ पुरे गुण नवि पामिएरे लाला, ए तो पंचमो काल; काल विषेश नवि गणे लाला, आखें मत एक ताल॥ जोज्यो भवि०॥ प्राणीयो०॥४॥ भेद कह्या देशवृतिना लाला, ते एकवीस देख्याल; आप जोइ गुण आपणा लाला, पछे साधुना तुं भाल ॥ जोज्यो भवि० ॥ प्राणीयो० ॥५॥ सूरि आवे सिद्धाचले लाला, दशमा अंगमा धार; तो किम उतराखंडनी लाला, नावे ते अणगार ॥ जोज्यो भवि०॥ प्राणीयो०॥६॥ वकूसने कुसिलनारेलाला, तेहना बहुल प्रकार; शुद्धा शुद्ध करता थका लाला, थासे बहुल प्रकार ॥ जोज्यो भवि०॥प्राणियो०॥७॥ साधवृत्तिमा कह्मो लाला, देश वृतिनो लाग; साधु काले जे हुवेरे लाला, तेहने देवो संविभाग ॥ जोज्यो भवि० ॥ प्राणीयो०॥ ८॥ साधु विना श्रावक होसे लाला, तिहां अछेरो थाय; अछेरा भूत उपन्यो लाला, कपटी कडवो साह ॥ जोज्यो भवि०॥ प्राणीयो०॥९॥नाम लेता पण एहनो लाला, होय दुर्गती ॥१४०॥ For And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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