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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दश मता धिकारे ॥१४९॥ www.kobarth.org. Acharya Shn Kailassagarsuri Gyanmandir आणा विनारे, तेर बोलनी वातोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ८ ॥ प्रथमतो इरीया वहीरे, पट आवशक्य अंत; महानिसिथे अक्षरारे, न देखे अवनीतोरे ॥ लोको भूलोमा ॥९॥ आचारंगे अंगे वस्त्रनेरे, धोवे रंगेरे जेह; पासथो ते सर्वथीरे, किम होवे साधु तेहरे ॥ लोको भूलोमा ॥ १० ॥ एकण देशे किम फरेरे, साधु जेहनोरे भेख; सकल देशे जयवरे, उतराध्येयन देखोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ ११ ॥ संवर पांच इंद्रि तणोरे, चउ कषाय निवार; गच्छनो ममत जेहने नहीरे, ते संवेगी जाणो रे ॥ लोको भूलोमा ॥ १२॥ राग द्वेषना ममतमारे, साधु धराव्युंरे नाम; आचारज पदवि तणुरे, साधुने छे कामरे ॥ लोको भूलोमा ॥ १३ ॥ ज्ञानविमल सूरिए धर्युरे, अवनि ते ए नाम; छांडो एह नाम भणीरे, जो वांछो शिव ठामोरे ॥ लोको भूलोमा ॥ १४ ॥ षट् आवशक्ये फरी फरी मांहिरे, इरिया वहिनुंरे नाम; नवमे अंगे अक्षरारे, मूढ ने देखे तांमरे ॥ लोको भूलोमा ॥ १५ ॥ घोर घनाघन वरसतारे, विजली चिहुँ दिसि थाय; दोय घडींनो सामायिक करेरे, पुरो किणविध थायरे ॥ लोको भूलोमा ॥ १६ ॥ उ बिहारि बहुहुयारे, आगे पण मुनिराय; ममत केणे नवि आदर्योरे, ममते दूर्गते For Pivate And Personal Use Only वर्धमान स्तवनम् ॥१४९॥
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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