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________________ SM Mahavam A kende www.kobateh.org. charya Shn.kailassagarsuriGyanmandir वर्धमान दशमता धिकारे स्तवनम् ॥१३९॥ 4560555CARRORSC) सने फरषेरे सित्तेर दिवसने दुरे वारे, तो मूढमती कीम तरशेरे॥धन धन ॥११॥दुपदि ज्ञात्रा श्रुत्रे पुजे,। जिन प्रतिमा त्रण कालरे; कल्याणक षट कांइ न दीसे, श्रुत्र चरित्र निहालरे ॥ धन धन ॥ १२॥ अधिक मास मंगलिकने कामे, क्याए न दिसे रीतरे; धर्म कर्मनो एकज मारग, राजा रुषि एक नित्यरे ॥ धन धन ॥ १३ ॥ आगलथी पञ्चास जो लेस्यो, तो पुटे कीम करश्योरे; समवायंगना अर्थ जोतांतो, भवोदधि कहो कीम तरश्योरे ॥ धन धन ॥ १४ ॥ उतराध्यन आगममां कह्यो, मास कल्प उपदेशरे; ते देखिने कीम नवि मानो, मुनीनो धर्म विशेषरे ॥ धन धन ॥ १५॥ आचा रंगथी अर्थ लहीने, जे मुनि पंचमे कालेरे; वाचकजस कहे तेहने भामणे, जे शुद्ध मारग पालेरे॥ धन धन ॥ १६ ॥ | ढाल-३–त्रीजी॥मोरडीनी देशी ॥ विमलजिन विमलता ताहरीजी॥ ए देशी ॥ मुनीवर वेष धर्यों विण गुरुजी, लोपीरे गुरुनी आण; अंग उपांग उथापतोजी, धिक्क पड्यो एहनो जाण ॥ भवि मुको मंगत राहविजी ॥ ए आंकणी ॥ १॥ नाम द्रव्यने ठवण भावनाजी, भगवइ अंगे होय; HALCARSANSA ॥१३९॥ R For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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