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दश मता धिकारे
शां. २४
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धन ॥ ए आंकणी ॥ २ ॥ नारीने न मुक्ति माने मुर्ख, खुहा पिवा सांहि भेदरे; त्रिलोक सार विसार विचारय तो, नारिने मुक्ति ज्युं वेदरे ॥ धन धन ॥ ३ ॥ ब्राह्म सुंदरी चंदन बाला, राजीमति जोनास्चरे; गोमटसार वृति जो जोतो, मुक्ते पहोंची छे नायरे ॥ धन धन ॥ ४ ॥ विक्रमथी अगी यारसें वर्षे, वली ओगणसाठ अधिकरे; पुन्य विहुणा पुनमीया उपना, जावाने नर्क नजीकरे ॥ धन धन ॥ ५ ॥ वीरजीए सुगडांगे चउदश भाषि, ते कीम आदरी पाखीरे; आवस्यक चुर्णे ने महानि सिथे, तीहां पण चउद्दश दाखीरे ॥ धन धन ॥ ६ ॥ कंबल संबल सागरचंद, आठम चउदश पोसहरे; विवहार चुर्णे जोज्योने मूर्खो, मत धरो मनमां धोस्यारे ॥ धन धन ॥ ७ ॥ पन्नर दिने आवे ते पाखि, चउदशे आलोयणा भाखिरे; पुनमनो दिन सर्वथा वर्जवो, सुगडांग टिका छे साखिरे ॥ धन धन ॥ ८ ॥ संवच्छर द्वादशने चार, विक्रमनो नीरधाररे; खर सरिखा खरतर उपना, पुजा त्रिने | निवारीरे ॥ धन धन ॥ ९ ॥ कल्यांणक पट वीरनां थाप्यां मास कल्प कस्यो दुररे; दुःख देखसे आगल जाता, भवो दधिने पुररे ॥ धन धन ॥ १० ॥ श्रावण भाद्रवा दो जिणे वर्षे, पंचास दिव
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वर्धमान स्तवनम्