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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra दश मता धिकारे शां. २४ www.kobahrth.org धन ॥ ए आंकणी ॥ २ ॥ नारीने न मुक्ति माने मुर्ख, खुहा पिवा सांहि भेदरे; त्रिलोक सार विसार विचारय तो, नारिने मुक्ति ज्युं वेदरे ॥ धन धन ॥ ३ ॥ ब्राह्म सुंदरी चंदन बाला, राजीमति जोनास्चरे; गोमटसार वृति जो जोतो, मुक्ते पहोंची छे नायरे ॥ धन धन ॥ ४ ॥ विक्रमथी अगी यारसें वर्षे, वली ओगणसाठ अधिकरे; पुन्य विहुणा पुनमीया उपना, जावाने नर्क नजीकरे ॥ धन धन ॥ ५ ॥ वीरजीए सुगडांगे चउदश भाषि, ते कीम आदरी पाखीरे; आवस्यक चुर्णे ने महानि सिथे, तीहां पण चउद्दश दाखीरे ॥ धन धन ॥ ६ ॥ कंबल संबल सागरचंद, आठम चउदश पोसहरे; विवहार चुर्णे जोज्योने मूर्खो, मत धरो मनमां धोस्यारे ॥ धन धन ॥ ७ ॥ पन्नर दिने आवे ते पाखि, चउदशे आलोयणा भाखिरे; पुनमनो दिन सर्वथा वर्जवो, सुगडांग टिका छे साखिरे ॥ धन धन ॥ ८ ॥ संवच्छर द्वादशने चार, विक्रमनो नीरधाररे; खर सरिखा खरतर उपना, पुजा त्रिने | निवारीरे ॥ धन धन ॥ ९ ॥ कल्यांणक पट वीरनां थाप्यां मास कल्प कस्यो दुररे; दुःख देखसे आगल जाता, भवो दधिने पुररे ॥ धन धन ॥ १० ॥ श्रावण भाद्रवा दो जिणे वर्षे, पंचास दिव For Pivate And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्धमान स्तवनम्
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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