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________________ ShriMahavirain AartmenaKendra Sya Sh Kailas Gyanmand दश मता वलि अनुयोग द्वार ॥ भविक०॥ जेहथी० ॥५॥जिहो वकुसने कुसिलनारे लाला, तेहना पञ्चविस वर्धमान धिकारे |भेद; जिहो जोइ महा निसिथनेरे लाला, पछे धरज्यो खेद ॥ भविक० ॥जेहथी०॥६॥ जिहो भष्म स्तवनम् ॥१३॥ ग्रहना योगथिरे लाला, पडता कालनो स्वभाव; जिहो बाह्य क्रीया आडंबरेरे लाला, धुत्यानो मल्यो । छे दाव ॥ भविक०॥जेहथी॥७॥ जिहो वीर वचन उथापतारे लाला, फरता फरे जिम ढोर; जिहो परम पदना प्रगट छेरे लाला, सहि ते जाणो चोर ॥ भविक० ॥ जेहथी०॥८॥ जिहो ममते जेणे ४ काटियारे लाला, तेहनो सुणो अधिकार; जिहो मत तिहां धर्म नहिरे लाला, जाणो भवि निरधार । भविक० ॥ जेहथी०॥९॥ जिहो तत्व पदारथे तत्वनेरे लाला, जांणिने जे नर ध्याय; जिहो। सुयस सुख लहश्ये घणोरे लाला, तेहना त्रिलोक सुरगुण गाय ॥ भविक० ॥ जेहथी० ॥१०॥ ढाल-२-बीजी ॥ धन धन संप्रति साचोराजा ॥ ए देशी ॥छसेंनें नव वर्षे महावीरथी, दीगं जबर मत थाप्योरे; आपमते नवा शास्त्र उपावी, वीर आगम उथाप्योरे; ॥१॥ धन धन श्री महावीर |जिनीवाणी, सकल सुखनि खांणिरे; साते नए चउ नीक्षेपे मलति, पांचमे प्रकरणे वखाणिरे ॥धन ॥१३ For Pale And Personal use only
SR No.020395
Book TitleJain Prachin Purvacharyo Virachit Stavan Sangrah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Rupchand Zaveri
PublisherMotichand Rupchand Zaveri
Publication Year
Total Pages411
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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